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गिरता मानव-घटती संस्कृति

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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मानव ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना है। सभी जीवों में मानव ही एकमात्र ऐसा जीव है जो सटीक बोल सकता है,जिसके पास बुद्धि है,संवेदना है,भविष्य की सोंच है,निरंतर प्रगतिशील है। यही एकमात्र ऐसा है जो समाज में एक निश्चित नियमों का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करता है।
प्राचीनकाल से ही यह देखा जा रहा है कि मानव निरंतर रहन-सहन,खान-पान,सुख-सुविधा के मामले में प्रगतिशील रहा है। आज मानव चाँद तक पहुँच गया है,वायुयान द्वारा उड़कर यात्रा करता है। घटने वाली प्राकृतिक घटनाओं को उपग्रहों के माध्यम से
मानव पहले ही जान लेता है। आधुनिक चिकित्सा के माध्यम से नेत्रहीनों को भी रोशनी प्रदान किया जाना सम्भव हो गया है।
उपरोक्त सभी तथ्यों की और ध्यान देने पर पता चलता है कि मानव प्राचीनकाल से अब तक निरंतर प्रगतिशील रहा है। वर्तमान समय में मानव प्रगति के सर्वोच्च स्तर तक पहुँच गया है,परन्तु मानवीय गुणों का निरंतर ह्रास होता आया है। सुनने में आश्चर्य लगता है परन्तु यह सत्य है कि इस मामले में मानव समाज दुर्गति की ओर अग्रसर है।
आज मानव भाग-दौड़ की जिन्दगी जी रहा है। सभी अपने अपने कामों में इस कदर व्यस्त हैं कि उनके पास दूसरों के लिए समय निकालना सम्भव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में वह स्वार्थी हो रहें हैं। बड़े तो बड़े,छोटों का दायरा भी उन्हीं तक सिमटता जा रहा है। आज बच्चे पढ़ाई के अलावा मोबाइल गेम,टी.वी.,कम्प्यूटर पर ही समय व्यतीत कर रहे हैं। इस तरह सभी अपने आस-पड़ोस के साथ रहते हुए भी उनसे दूर होते जा रहे हैं,मतलब लगाव कम होता जा रहा है।
इन दिनों कुछ इस तरह का माहौल बना हुआ है कि मानव मीडिया और प्रचार तंत्र पर आकर्षित होकर अपना क्रियाकलाप परिवर्तित कर रहा है। आज लोग किसी भी संस्कृति,तथ्य,भाषा, वस्तु और ज्ञान के गुणों को नजरअंदाज कर केवल उन्हें इस कारण अपना रहे हैं,क्योंकि वह इसे बड़े-बड़े लोगों द्वारा प्रचारित होते देखते हैं। परिणामस्वरूप माताजी-पिताजी अब ‘माॅम-डैड’ हो गए हैं। दही,नींबू,बेल पर अब पेप्सी कोक भा गया है। प्रणाम- आशीर्वाद को अब हाई,बाई खा गया हैं। घर के बड़े-बूढ़े घर-आँगन को छोड़ वृद्धाश्रमों में रहने को बाध्य हो रहे हैं।
एक समय ऐसा था कि मानव युद्ध में भी नियमों का पालन करता था,पर आज लोग नियमों में भी युद्ध करते हैं। पहले कानून को धर्म का ही पर्याय समझा जाता था,पर अब कानून को केवल मानव निर्मित तथ्य समझा जाने लगा है,जिसमें प्रायः सभी अपना हित खोजने में लगे हुए हैं। पहले राजा अपने वचन एवं प्रजाहित के लिए अपने सारे सुखों का त्याग करने में तनिक भी नहीं हिचकते थे,प्रजारंजन के लिए अपनी जीवनसंगिनी तक का त्याग करने के उदाहरण मिलते हैं,परन्तु आज सत्ता में लोग केवल अपना हित साधते हैं। इसे हासिल करने के लिए अपनों का बलिदान करने में तनिक भी नहीं हिचकते।
कहने का तात्पर्य यह है कि जहाँ मानव ने एक ओर काफी प्रगति की है,वहीं वह मानवता के स्तर को गिराता चला गया है। आज मानव में एकता-अखंडता,शान्ति,संतुष्टि,कर्तव्यपरायणता जैसे मानवीय गुणों के स्तर पर काफी हद तक गिरावट देखी जा रही है। आज हमारे ऋषि-मुनियों की सभ्यता खतरे में है और ऐसा ही जारी रहा तो हमारा भविष्य निश्चय ही अंधकारमय होगा।
अगर अभी से ही इस पर विचार नहीं किया गया तो भविष्य में निश्चय ही मानव की तरक्की होगी,पर मानवता का नाश होगा। सुखों में वृद्धि होगी,पर शान्ति का अभाव होगा। भले ही मानव सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाएगा,पर जश्न मनाने में कोई अपना नहीं होगा।
अतः,हमें आवश्यकता है कि हम सब मिलकर इस गिरती मानवता को रोकें,अपनी पुरानी संस्कृति को बचाएं।

परिचय-साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैl जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैl भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैl साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैl आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैl सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंl लेखन विधा-कविता एवं लेख हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंl विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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