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निजी स्वार्थ

गुलाबचंद एन.पटेल
गांधीनगर(गुजरात)
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हिमालय की ओर ऊपर एक बस ढलान पर जा रही थी,उसमें एक किसान अपनी पत्नी के साथ सफर कर रहा था। बस पर्वत पर आगे बढ़ रही थी। किसान ने कंडक्टर को विनती की, कि उसे बीच में अपने गांव के पास उतारा जाए। कंडक्टर ने आगे बढ़कर घंटी बजाई, किसान ने खुश होते हुए बस से उतर कर कंडक्टर और ड्राइवर का आभार प्रकट किया।
बस चली,आगे बढ़ी, तो किसान ने देखा कि थोड़े आगे जाते समय भू-स्खलन(पत्थर खिसकना) की वजह से एक बड़ा पत्थर नीचे की ओर बीच रास्ते में आकर बस से टकराया। बस खाई में गिर गई,और उसमें सवार करीब ५० लोगों ने अपनी जान खो दी। किसान की पत्नी खुश हुई,बोली-चलो अच्छा हुआ अपनी जान बच गई।

किसान रो रहा था,तो पत्नी ने पूछा-आप क्यों रो रहे हैं ? अपनी जान बच गई है,हमें खुश होना चाहिए। तब किसान ने कहा कि-हम बीच रास्ते नहीं उतरते तो बस बहुत आगे निकल जाती। ५ मिनट में बहुत दूर निकल जाती और ये हादसा नहीं होता। अपने निजी स्वार्थ के लिए कि हमें पैदल गांव जाना नहीं पड़े,इस लिए बीच में बस रुकवाई। किसान बहुत दुखी हो गया। तब उसने मरने वालों के लिए प्रभु से प्रार्थना की कि उन्हे शांति मिले।

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