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गोष्ठी में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर किया काव्य पाठ से चिंतन

हैदराबाद (तेलंगाना)।

विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई और सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ( हैदराबाद) के संयुक्त तत्वावधान में ३९वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। इसमें पर्यावरण पर चिंतन के साथ ही सबने काव्य रस का आनंद भी लिया।
संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों का हार्दिक अभिनन्दन किया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अहिल्या मिश्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो की प्रकृति वन्दना से गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। ‘पर्यावरण संरक्षण’ के लिए समर्पित इस गोष्ठी में सरिता सुराणा ने प्रथम सत्र में पर्यावरण प्रदूषण और उससे बचाव से सम्बन्धित विषय पर कहा कि, पर्यावरण और प्राणी जगत एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं। इसलिए यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को स्वच्छ रखें।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक डॉ. सुमन लता ने कहा कि जिस तरह पंच तत्वों का महत्व है, उसी तरह पंच महाभूतों की स्थापना भी महत्वपूर्ण है। कटक (उड़ीसा) से कहानीकार श्रीमती रिमझिम झा ने कहा कि, पर्यावरण देश का मुखिया है और उसका स्वस्थ और स्वच्छ होना जरूरी है। जयपुर (राजस्थान) से वरिष्ठ साहित्यकार चंद्र प्रकाश दायमा ने कहा कि, आज़ पूजा के समय वृक्ष की टहनियां उखाड़ तो लेते हैं लेकिन नए पौधे नहीं लगाते। इसलिए प्राकृतिक असंतुलन बढ़ता जा रहा है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह से कवयित्री डॉ. आशा गुप्ता ‘आशु’ ने भी अपनी बात रखी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डाॅ. मिश्र ने कहा कि, हमारे चारों ओर वन सम्पदा की जगह कांक्रीट का जंगल खड़ा हो गया है। उन्होंने वर्तमान में हो रहे जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण पर चिन्ता जताते हुए इनसे बचने के उपायों के बारे में भी बहुत सार्थक और सारगर्भित बातें बताई। श्रीमती आर्या झा ने प्रथम सत्र का धन्यवाद ज्ञापित किया।

तत्पश्चात् द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी में उपस्थित सभी साहित्यकारों ने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया। श्रीमती भावना पुरोहित, श्रीमती झा, श्री दायमा, और सरिता सुराणा ने काव्य पाठ किया। डॉ. मिश्र ने ‘पत्थर की भी अपनी एक कहानी है’ का ओजस्वी वाणी में पाठ किया। श्रीमती झा ने द्वितीय सत्र का आभार माना।

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