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चलो चलें वनभोज में

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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चलो चलें वनभोज में,
मिल-जुलकर मौज में
पूस माह के संयोग में,
चलो चलें वनभोज में।

कह दो सभी दोस्तों को,
छोड़ो न किसी रिश्ते को
मिल-जुलकर सभी जाएँगे,
झूमेंगे, नाचेंगे और गाएँगे।

चलो चलें वनभोज में,
नदी, झील या हील में
ख्वाबों की मंजिल में,
चलो चलें वनभोज में।

जाकर सहर्ष वनभोज मनाएंगे,
खाएंगे पकवान और खिलाएंगे
वर्ष तेईस का करेंगे अवलोकन,
तैयारी चौबीस हेतु मन सजाएंगे।

चलो चलें वनभोज में,
मिल-जुलकर मौज में।
तेईस अंत चौबीस खोज में,
चलो चलें वनभोज में॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।