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चार चुभते हुए मामले

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आज अदालत के चार मामलों ने देश में बड़ी खबरें बनाईं। एक तो प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगाई का मामला,दूसरा राहुल गांधी की माफी,तीसरा किरन बेदी पर लगाम और चौथा नारायण सांई की उम्र-कैद का मामला। रंजन गोगोई पर लगे यौन-उत्पीड़न के आरोप की सुनवाई का पीड़ित महिला ने बहिष्कार कर दिया। उसका कहना है कि तीन जजों की वह कमेटी उसे इतना डरा-धमका रही थी और उसकी नौकरी बहाल करने का लालच भी दे रही थी कि उसे यह समझ नहीं पड़ रहा था कि यह उसके आरोपों की न्यायिक जांच है या कुछ और है। उसकी शिकायत यह भी है कि न तो वहां होनेवाली बातचीत का कोई रेकार्ड रखा जा रहा था और न ही उसकी मदद के लिए किसी वकील या साथी को वहां बैठने दिया जा रहा था। उसे यह भी हिदायत थी कि वहां हुई बातचीत को वह गोपनीय रखे। इसमें शक नहीं कि उस महिला को कई प्रसिद्ध वकीलों का समर्थन मिल रहा है,लेकिन यह मामला इतना उलझ गया है कि पहले तो प्रधान न्यायाधीश और अब उस जजों की न्यायिक जांच कमेटी पर भी प्रश्न-चिन्ह लग गए हैं। राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायालय से माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा लेकिन राहुल अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनका आचरण देश की सबसे महान पार्टी के अध्यक्ष के लायक नहीं है। पुद्दुचेरी की उप-राज्यपाल किरन बेदी को मद्रास उच्च न्यायालय ने फटकार लगाई है। जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को दरकिनार करके अपने वाली चलाना कहां तक ठीक है ? किरन जी को अब अपनी पुरानी पुलिसवाली आदत छोड़कर संवैधानिक मर्यादा में रहना होगा। चौथा मामला आसाराम के कुपुत्र नारायण सांई का है। उसे अदालत ने उम्र-कैद से नवाजा है। एक साध्वी के साथ बलात्कार और व्यभिचार करने की यह सजा है। जैसा बाप वैसा बेटा ! आसाराम को मैंने झांसाराम और निराशाराम की उपाधि दी थी। अंदाजा है कि नारायण की माँ और बहन भी शीघ्र ही जेल जाएंगी। इस परिवार ने साधु-संतों और संन्यास की जितनी बदनामी की है,उतनी शायद ही किसी ने की हो। ये अकेले नहीं हैं। इनके जैसे कई हैं। सच्चे साधु तो बस गिनती के ही हैं। इन पाखंडी साधुओं से भी ज्यादा दोष उन अंधभक्तों का है,जो भगवा वस्त्र देखते ही अपना दिमाग ताक पर रख देते हैं।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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