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चिंता कीजिए

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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यह कैसा वर्तमान… ?
जिसमें हैं अनेक सामाजिक विडम्बनाएं
रोज गिर रहे नैतिक मूल्य,
रिश्ते-नाते भी बिखर रहे।

स्वार्थ केन्द्रित हो रहा है हर व्यक्ति,
जारी है राजनीतिक अवमूल्यन भी
आगे बढ़ता समाज-देश पर,
नारी का भी हो रहा है अवमूल्यन
तो पुरुष का भी।

हम आज प्रगति पथ पर,
किन्तु, दाम्पत्य का भी हो रहा अवमूल्यन
शिक्षा के नाम पर भी बढ़ा है व्यापार,
और
व्यापार-व्यवसाय में भी बढ़ रही लूट।

मानना पड़ेगा इसे व्यापक विकार,
मिटानी होगी यह विद्रूपताएं और नकारात्मकताएं भी,
क्योंकि, इनसे जन्मता है दर्द और टीस
जो बड़े घातक रोग हैं जीवन के लिए,
समाज-देश के लिए।

इसलिए,
कीजिए पूरा मनन।
और चिंता का चिंतन भी,
ताकि
रह सकें सब खुशहाल
…और देश भी॥