शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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अब अपनी ख्वाहिशों को यूँ दबा देने से क्या होगा,
जमाने को यूँ अपना जख्म दिखलाने से क्या होगा॥
मेरे दिल पर जो गुज़री है भुलाना है बहुत मुश्किल,
तुम्हारी याद को दिल से मिटाना है बहुत मुश्किल।
किसी को दर्द सीने का दिखा देने से क्या होगा,
अब अपनी ख़्वाहिशों…॥
मेरी तन्हाइयों का अब यहाँ साथी नहीं कोई,
जिसे अपना कहूँ समझे मुझे ऐसा नहीं कोई।
बहुत ही दूर हो अब तुमको समझाने से क्या होगा,
अब अपनी ख़्वाहिशों…॥
कभी जो याद भी आये तो अपने मन को समझाना,
तुम्हें मेरी कसम है आँख में आँसू न ले आना।
न जाने कब मिलन हो,दिल को तड़पाने से क्या होगा,
अब अपनी ख्वाहिशों…॥
कभी अपना मिलन होगा ज़रा तुम हौंसला रखना,
समय फिर लौट कर आये ख़ुदा से ये दुआ करना।
रहेंगे साथ हम फिर दिल को झुलसाने से क्या होगा,
अब अपनी ख्वाहिशों को यूँ दबा देने से क्या होगा …॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है