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जगत के रक्षक

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:५-७-५ अक्षर के क्रम में ३ पंक्तियां प्रति पद…

भगवान हैं,
जगत के रक्षक
कण-कण में।

रूप बदलें,
प्रभु रक्षक बन
क्षण-क्षण में।

पहचानना,
मुश्किल है उनको
सबके लिए।

ईश्वर रहें,
मात-पिता बन के
दिखें सबको।

लगन, श्रृद्धा,
त्याग, प्रेम, विश्वास
उनके धाम।

प्रभु सजते,
जब मन भजता
श्री राम नाम।

मैंने देखे हैं,
देख लेंगे आप भी
बुलाइए तो।

बिन स्वार्थ के,
मूरत को प्रभु की
सजाइए तो॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।