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जय माता दी वन्दना

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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शक्ति, भक्ति और दिखावा…

शुक्ला आश्विन मंगला, शारदीय त्यौहार।
नव दुर्गा आराधना, कीर्ति मिले सुख सार॥

अभिनन्दन स्वागत करें, नवरात्रि त्यौहार।
पूजन नित नवशक्ति से, मानवता उपकार॥

नीति-प्रीति सुख संपदा, परहित शान्ति सम्मान।
नवदुर्गे नवरात्रि में, दे सम्बल वरदान॥

सबसे सबकी बन्धुता, हो संस्कृति अभिमान।
शैलपुत्री तू कृपा कर, सदा राष्ट्र सम्मान॥

सबसे सबकी बन्धुता, निज संस्कृति अभिमान।
राष्ट्र विरोधी अरि दलन, बढ़े भारती शान॥

सरसिज वदना शैलजे, नीति रीति सब प्रीति ।
मति विवेक सद्ज्ञान दे, जीवन यश नवनीत॥

कलश स्थापना सविधि कर, आवाहन जगदम्ब।
शैलपुत्री मातु प्रथम, राष्ट्र शक्ति अवलम्ब॥

ब्रह्मचारिणी सिद्धि दे, नीति प्रीति समदृष्टि।
नित विवेक सद्ज्ञान से, ज्योतिर्मय हो सृष्टि॥

ब्रह्मचारिणी तू शिवा, त्यागमूर्ति सत्काम।
आज कुपथ तव सन्तति, करे वतन बदनाम॥

मचा रखा आतंक है, महिषासुर बहु देश।
भक्ति भाव पूजन करो, चन्द्रघण्टा महान्॥

कुष्माण्डा जगदम्बिके, हरो शोक अभिमान।
अज्ञान तम फैला धरा, दो प्रकाश मति ज्ञान॥

तारक का संहार कर, स्कन्धमातु जग त्राण।
नाश करो प्रसरित असुर, करो जगत कल्याण॥

किया एक हुंकार से, धुम लोचन संहार।
करो भक्ति कात्यायिनी, सकल पाप से पार॥

चामुण्डे वरदायिनी, कालरात्रि विकराल।
रक्तबीज के रक्त पी, है भारत बेहाल॥

माँ गौरी अवतार में, शुम्भासुर संहार।
रिद्धि-सिद्धि बल बुद्धि दे, सिद्धिदातृ उपहार॥

कवि ‘निकुंज’ माँ प्रार्थना, हर आतंकी पाप।
अन्तर्बहि सम शान्ति दे, मिटे राष्ट्र अनुताप॥

सभी सभी के मित्र हों, जीवन हो नवनीत।
सुखी-खुशी-यश सम्पदा, शारदीय जय गीत॥

जय माता दी वन्दना, पूजन जय जयकार।
दया करो जगदम्बिका, तुम हो करुणागार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥