विद्या होवाल
नवी मुंबई(महाराष्ट्र )
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जिंदगी की रेलगाड़ी,
उम्मीदों की पटरी पर चल पड़ी
आशाओं के ईंधन से भरी,
सपनों के शहर चल पड़ी।
जिंदगी की रेलगाड़ी,
रिश्तों के डिब्बों को जोड़कर
प्यार का टिकट संजो कर,
विश्वास के हमसफ़र संग दौड़ चली।
जिंदगी की रेलगाड़ी,
मुश्किलों की डगर से गुजर
बिना डरे हर्षोल्लास की खोज में,
तेज रफ्तार से आगे निकल पड़ी।
जिंदगी की रेलगाड़ी,
कल्पनाओं के स्टेशन पर थमकर।
नए बदलावों को अपनाकर,
सजगता की ओर बढ़ चली॥