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टीस-सी भर गई उनके ना होने की…

विजयलक्ष्मी
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आज जब वे नहीं हैं उनकी बच्चों-सी कोमल और छोटी-छोटी हथेलियों की नाजुक छुअन रह-रह कर अनुभव हो रही है। फर्क बस इतना है कि आज उस नाजुक छुअन में एक टीस-सी भर गई है उनके ना होने की।
शासकीय सेवा के दौरान होशंगाबाद में स्वागत सेवा करते हुए मुझे माँ नर्मदा के आँचल में सुषमा जी के साथ नौका विहार का अवसर मिला। बातचीत में वह मुझसे भी उतनी ही सहज थीं जितनी अपने राजनीतिक सहयोगियों के साथ। उन्हें घुटनों में तकलीफ रहती थी। अतः नौका चढ़ते समय उन्होंने अनायास ही मदद की अपेक्षा से मेरी और अपना हाथ बढ़ा कर मेरी ओर देखा। मैंने तत्काल ही उनका हाथ थाम लिया। मेरी मदद से वे नौका मैं सवार हो गईं। दूसरे तट पर उतरते समय मैंने स्वाभाविक ही मदद के लिए उनकी ओर हाथ बढ़ाया। वह मुस्कुरा पड़ीं और मेरा हाथ पकड़ कर नाव से उतर गईं। फिर तो उस दिन सांध्य भोजन तक हमारा साथ रहा। उनकी वे बड़ी-बड़ी आँखें और मोहक मुस्कान आज कुछ अधिक ही जीवंत होकर बोल रही हैं।
क्या वे जल्दी चली गईं ? मुझे लगता है नहीं मेरे विचार से उन्होंने अलविदा कहने के लिए सबसे सटीक समय चुना। देश- विदेश हर तरफ अपनी भूमिका पूर्ण की और भारत का मुकुट आरोहण होते ही एक सुखद अहसास के साथ चल पड़ीं अनंत यात्रा पर। मृत्यु का इससे सुंदर समय और कोई नहीं हो सकता था उनके लिए।
जब वे थीं उन्हें याद करने की आवश्यकता नहीं थी,पर अब भूलना असंभव होगा उन्हें,उनकी बड़ी-बड़ी आँखों को,उस मधुर मुस्कान को और उस नाजुक स्पर्श को। आप जहां रहें,ऐसी ही रहें सुषमा जी।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

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