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जीना सीखो

महेन्द्र देवांगन ‘माटी’
पंडरिया (कवर्धा )छत्तीसगढ़ 
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जीवन को तुम जीना सीखो,हर पल खुशी मनाओ जी।
चाहे कितने संकट आये,कभी नहीं घबराओ जी॥

सिक्के के दो पहलू होते,सुख-दु:ख आनी-जानी है।
कभी खुशी तो गम भी आते,सबकी यही कहानी है॥

होना नहीं उदास कभी भी,गीत खुशी के गाओ जी।
चाहे कितने संकट आये,कभी नहीं घबराओ जी॥

भेदभाव अब करना छोड़ो,सेवा का पथ अपनाओ।
भूले भटके राहजनों को,सच्चे मारग दिखलाओ॥

भूखे को सब भोजन देकर,प्यासे प्यास बुझाओ जी।
चाहे कितने संकट आये,कभी नहीं घबराओ जी॥

करते हैं जो सच्ची सेवा,कभी नहीं दुख पाते हैं।
मिलता है आशीष उसी को,खुशियों से भर जाते हैं॥

बाँटो प्रेम सभी में साथी,हर पल प्यार लुटाओ जी।
चाहे कितने संकट आये,कभी नहीं घबराओ जी॥

‘माटी’ का ये जीवन प्यारे,माटी में मिल जायेगा।
मिट जायेगी सारी हस्ती,नाम यहीं रह जायेगा॥

नेक काम सब करते जाओ,मन में पाप न लाओ जी।
चाहे कितने संकट आये,कभी नहीं घबराओ जी॥

परिचय–महेन्द्र देवांगन का लेखन जगत में ‘माटी’ उपनाम है। १९६९ में ६ अप्रैल को दुनिया में अवतरित हुए श्री देवांगन कार्यक्षेत्र में सहायक शिक्षक हैं। आपका बसेरा छत्तीसगढ़ राज्य के जिला कबीरधाम स्थित गोपीबंद पारा पंडरिया(कवर्धा) में है। आपकी शिक्षा-हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर सहित संस्कृत साहित्य तथा बी.टी.आई. है। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सहयोग से आपकी २ पुस्तक-‘पुरखा के इज्जत’ एवं ‘माटी के काया’ का प्रकाशन हो चुका है। साहित्यिक यात्रा देखें तो बचपन से ही गीत-कविता-कहानी पढ़ने, लिखने व सुनने में आपकी तीव्र रुचि रही है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविता एवं लेख प्रकाशित होते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा से प्रकाशित पत्रिका में भी कविता का प्रकाशन हुआ है। लेखन के लिए आपको छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा सम्मानित किया गया है तो अन्य संस्थाओं से राज्य स्तरीय ‘प्रतिभा सम्मान’, प्रशस्ति पत्र व सम्मान,महर्षि वाल्मिकी अलंकरण अवार्ड सहित ‘छत्तीसगढ़ के पागा’ से भी सम्मानित किया गया है।

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