कुल पृष्ठ दर्शन : 303

You are currently viewing जीवन जीते हैं जीने को‌

जीवन जीते हैं जीने को‌

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
****************************************

जी भी लेंगे जीवन यूँ जीने को,
बड़े भाग्य से यह मनुष्य तन पाया
सुपथ सुकर्म-धर्म से जीवन
साहित्यमय मंगलम् निभाने को,
जीवन जीते हैं…।

हिंदी साहित्य-काव्य सम्मेलन के साहित्यांगन में,
शब्द पुष्प बरबस बरसाने को
राष्ट्र-हित में निश्चल भाव प्रेम से,
कदम से कदम मिलाते हर विपद में चलने को,
जीवन जीते हैं…।

आदि अंत में सर्वथा जीवों से
सौहार्द में मिलें मिलाने को,
रोने में भी हँस-हँस जाएं नित
व्यस्त मस्त योग करने को,
जीवन जीते हैं…।

मृत्यु-मोक्ष के बीच सशक्त हो
ज्वलंत प्रीत जगाने को,
अमर अमरत्व में हो साहित्य जग के
अनवरत अविचल जीने को,
जीवन जीते हैं…।

खुले विस्तृत नील गगन उड़े पंख फैलाए परिंदे उड़ान को,
‘किरण’ फैले जीवन सुखद नभ में।
दीप जलाकर अंधेरा भगाने को,
जीवन जीते हैं…॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।