डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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ईश्वर की है, कैसी ये माया,
पाँच तत्व की बनी ये काया
काम, क्रोध और लोभ, मोह,
सब है इस तन में समाया।
मनुज तप, जप, यज्ञ भुलाया,
कलियुग का है, इस पर साया
काम क्रोध और लोभ, मोह ने
आज इसे जी भर के नचाया।
व्यर्थ के हैं सब ये ताने-बाने,
मूर्ख मनुज ने कहाँ ये जाना
भाग रहा धन-दौलत के पीछे,
हरि-चरण का राज ना जाना।
भवसागर यह हमें पार कराए,
अपनी मंजिल तक पहुंचाए
राम नाम ही है, एक आधार,
जीवन मिलता है एक बार।
कुछ दिन का है ठौर-ठिकाना,
पुण्य कर्म ही करके जाना
व्यर्थ ना गंवाना ये जिन्दगानी,
याद करे जग तेरी कहानी।
दुनियां कहाँ किसी की हुई
लगा रहा, यहाँ आना-जाना
मिट्टी का सुंदर पुतला है तू,
मिट्टी में ही, है मिल जाना।
सबकी यही गती एक दिन,
सबको जाना है उस पार।
राम नाम ही एक आधार,
जीवन मिलता है एक बार॥