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अपराध मुक्त समाज के लिए कानून-नैतिकता का महत्व बनाना होगा

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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जब से मानव का उदय सृष्टि में हुआ, तबसे अपराध होना शुरू है। मानव में मन होने से वह अन्य जानवरों से श्रेष्ठ जानवर बन गया या माना जाने लगा। मन युक्त होने से उसमें विचारणा शक्ति आने से वह विवेक पूर्ण कृत्य करता है। यह जरुरी नहीं है कि, उसका हर कृत्य सही हो। मन के बारे में कहा जाता है कि, मन बन्दर के सामान चंचल होता है। ऊपर से उसके बाद वह शराब पी ले और उसे बिच्छू काट ले, तब उसका उपद्रव देखो। मन चंचलता के साथ कल्पना लोक में कहाँ से कहाँ ले जाए, पता ही नहीं चलता।
सबसे पहले संसार सञ्चालन के लिए नियम बनाए गए, उन नियमों में जब-जब किसी को नुकसान होना शुरू हुआ, तब उसमें संशोधन या सुधार किए गए। ऐसा भी कह सकते हैं कि, सुधार के लिए संशोधन किए गए। संसार में जितने भी नियम बने हैं, वे पंच पापों के लिए बनाए गए हैं। आज पूरे विश्व की कानूनों की किताबों को जोड़ा जाए तो उनकी श्रखंला कश्मीर से कन्या कुमारी तक हो सकती है। ये पाप-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह हैं। आज हर जगह हिंसा आदि पापों से भरी पड़ी रहती है। जितने भी पाप हैं, या अपराध या नियम या कानून इन्हीं पंच पापों के लिए बनाए गए हैं। हमारे धार्मिक और न्यायिक ग्रंथों में इन ५ पापों के निराकरण के लिए अपराध सम्बन्ध कानून और व्रत बताए गए हैं।
पापों का निराकरण ५ व्रतों के पालन से होता है-हिंसा का विरोधी अहिंसा, झूठ का विरोधी सत्य, चोरी का विरोधी अचौर्य, कुशील का विरोधी ब्रह्मचर्य और परिग्रह का विरोधी अपरिग्रह। इन ५ पापों का यदि मनुष्य अध्ययन कर ले, तो उसके जीवन में सदाचार आना शुरू हो जाएगा। यानि नैतिकता जीवन में आएगी और सद्वृत्ति होने से वह सात्विक जीवन को स्वयं में उतारेगा।
अपराधों की रोकथाम में जितना हिस्सा कानूनों का है, उससे अधिक धार्मिकता जीवन में आ जाए तो बहुत सीमा तक अपराधों की रोकथाम हो सकती है। इसके लिए जरूरी है कि, हमारे समाज के प्रमुख नेता, संत, महंत, मुखिया का अपना चरित्र नैतिकतायुक्त होना चाहिए। आज ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ वाली हालत है। यानि जनता-समाज से यह अपेक्षा की जाती है कि, वे नैतिक हों, जबकि खुद अनैतिकता से लिप्त हैं। जब तक समाज में दोहरापन होगा, तब तक अपराधों में कमी होना भी असंभव होगा। हर मनुष्य हर प्रकार की सुविधा चाहता है। धरम की मान्यता है कि, हम जो कुछ सुख-दुःख पाते हैं, वे हमारे द्वारा किए गए पुण्य-पाप के फल हैं। जैसे कोई चोरी करता है तो वह पकड़ा नहीं जाता और कोई तुरंत पकड़ा जाता है तो दण्डित होता है।
हमें बच्चों को शुरू से अच्छे संस्कार देना चाहिए, गुरुओं के सानिध्य में कुछ नियम लेना चाहिए, शालाओं,
महाविद्यालयों और कार्यस्थल में अच्छा वातावरण रहे तथा सकारात्मक सोच पैदा करना चाहिए। इस बात की भी जानकारी देना चाहिए कि, यदि हमने नैतिकता और धार्मिक मान्यताओं को नहीं माना, तो उससे जीवन में विपरीत प्रभाव पड़ेगा और संभव हो कि आगामी जीवन भी दुःखमय हो, क्योंकि हमारे कर्मों की रिकॉर्डिंग हमेशा होती रहती है। उनमें कोई बदलाव नहीं कर सकता।
न्याय हमेशा साक्ष्य पर आधारित होता है, कभी-कभी साक्ष्य के अभाव में कोई अपराध मुक्त हो जाता है और कभी साक्ष्य के कारण अपराधी मान लिया जाता है। या न्यायालय में लोभ-लालच से बच जाते हैं और कभी दण्डित होकर सजा भुगतनी पड़ती है। दंड, दंड होता है, जैसे हथकड़ी सोने की हो या लोहे की, वह हथकड़ी ही कहलाती है। ऐसे कोई कहे कि, में जेल में बड़ा सुखी रहता हूँ, मेरी वहां प्रतिष्ठा है तो यह कोई बात नहीं है। अपराधियों को कभी भी सामाजिक और राजकीय प्रतिष्ठा नहीं मिलती। राजा द्वारा अपमानित व्यक्ति हर जगह अपमानित होते हैं। अपराधियों को कोई भी सामाजिक, पारिवारिक सम्मान नहीं मिलता, जबकि धर्म और नैतिकता का पालन करने वालों को हर जगह इज्जत मिलती है।

आज जरुरत है कि, व्यक्ति को धर्म और नैतिकता का पालन करना चहिए। हिंसा, झूठ, चोरी, बलात्कार और अधिक जमाखोरी करने वालों को परामर्श के साथ नैतिकता की शिक्षा देनी होगी। जिस प्रकार तराज़ू के २ पलड़े होते हैं, उसी प्रकार पाप और धर्म या व्रतों को समता रूपी ज्ञान से समझना होगा। जो पलड़ा भारी होता है, वह नीचे जाता है और जो हल्का होता है, वह शिखर पर जाता है। यह हमारे ऊपर है कि, हम किसको अंगीकार करें। आज क्या, अपराधियों को तो हमेशा हिकारत की नज़र से देखा जाता है। ऐसे में आवश्यक है कि, अपराधों के नियंत्रण के लिए क़ानून कड़े बनाए जाएं, साथ ही धार्मिक वातावरण बनाकर उनको बुरी आदतों से मुक्त करें और आदर्श नागरिक बनें, इसको प्रेरित करना होगा। इसके लिए जरुरी है कि, विद्यालयीन शिक्षा से नैतिकता का पौधरोपण किया जाए। ‘भय बिन प्रीत न होत गुसाईं’ मतलब सामाजिक और न्यायिक दंड से सुधार की संभावना हो सकती है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।