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जीवन है़ आलोकित तुमसे

उमा विश्वकर्मा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)
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अरुण तुम्हारे प्रकृति चरण को,नितप्रति चूमा करती है,
युगों-युगों से सतत अनवरत,पृथ्वी घूमा करती है।

भांति-भांति के जीव जगत में,भिन्न भिन्न हैं प्राणी,
जीवन है आलोकित तुमसे,मिली चराचर को वाणी
सबको अपने अंक समेटे,प्रतिपल ऊर्जा भरती है,
अरुण तुम्हारे प्रकृति चरण को,नितप्रति चूमा करती है।

सतत सदा निर्बाध निरन्तर,नदियाँ इसमें बहती हैं,
मुझसे लेकर मुझमें आना,बादल से जा कहती हैं
पर्वत,सागर और वनस्पतियों से भरी ये धरती है,
अरुण तुम्हारे प्रकृति चरण को,नितप्रति चूमा करती है।

तुम उजास के सच्चे वाहक,स्वर्णिम आभा लाते हो,
कण-कण में भर कर प्रकाश तुम,उजियारा फैलाते हो।
ऋणी रहेगी सदा धरा ये,यही भाव उर भरती है,
अरुण तुम्हारे प्रकृति चरण को,नितप्रति चूमा करती है॥

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