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जैसा मैं सोचता हूँ

सतीश विश्वकर्मा ‘आनंद’
छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)
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शब्द मैंने लिखे जो अमर हो गए।
कुछ तो ऐसे लिखे कि समर हो गए।

बारहा वो सितम मुझपे करता रहा,
मैंने हमले किये जो कहर हो गए…।

हमने ज़मज़म समझकर जिसे पी लिया,
ज़िन्दगी के वो प्याले ज़हर हो गए…।

तेरी आगोश में खुद को बेखुद किया,
सारी दुनिया से हम बेखबर हो गए…।

वो कदम दो कदम क्या मेरे साथ थे,
प्यार के किस्से पूरे शहर हो गए…।

बचपने में जमीं मे दबाये थे जो,
बीज देखो वो सारे शज़र हो गए…।

परिचय-सतीश विश्वकर्मा का साहित्यिक उपनाम `आनंद` हैl जन्म २८ अप्रैल १९८५ को छिंदवाड़ा (म.प्र.)में हुआ हैl इनका वर्तमान पता मेरठ और स्थाई छिंदवाड़ा ही हैl आपको भाषा ज्ञान-हिंदी,अंग्रेजी एवं पंजाबी का हैl स्नातक तक शिक्षित होकर कार्यक्षेत्र-नौकरी(भारतीय थल सेना)हैl आप सामाजिक गतिविधि के निमित्त स्थानीय काव्य गोष्ठियों मे उपस्थित रहते हैंl `आनंद` की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और मुक्तक हैl कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं को स्थान मिलता रहता हैl श्री विश्वकर्मा की लेखनी का उद्देश्य-स्वच्छ साहित्य एवं राष्ट्रवाद का प्रसार हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-स्व.दुष्यंत कुमार तथा कुमार विश्वास हैंl इनके लिए प्रेरणा पुंज-स्व.दुष्यंत कुमार ही हैंl

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