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ठंडी हवाएं

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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हवाओं में,
लहर एक हवा की
ऐसी,
बणी-ठणी चली
नाम है उसका,
‘तू’ नहीं ‘मैं’
कुर्सी बोली,
नहीं!
‘ये’ नहीं ‘वह’
जनता!

हो सजग
कहे,
न ‘तू’
न ‘वह’,
न ‘ये’
न ‘ऐ’
नवयुवक!

खेलें,
मंडल-कमंडल
चलें,
देश से विदेश
श्वास खींच
ठंडी हवाएं पुकारें,
हो वृद्ध!

जीवित हैं,
आश्रम।
औ’,
अस्पताल में॥

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