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ठोकरें ही ठोकरें

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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ठोकरें लगती हैं,
ज्यादातर अपने ही लोगों से
पत्थर की ठोकरें,
स्वयं अपने में यादगार चिन्ह
बना लेती हैं।

ठोकरें‌ खा खाकर ही,
बनते हैं‌ हम महान
पुनर्प्रयास और अभ्यासों से,
ठोकरें अनायास की हो तो,
संभलने की मौका भी,
वास्तविकता को प्रदर्शित कर
अग्रसर होने की राह,
दिखाने में सक्षम हो जाती।
कुछ ठोकरें‌ मानस पटल पर,
अजगर-सी कुंडली मारकर
बैठे-बैठे ही जीवन के,
हर कठपुतली के सूत्रधार
इरादों से निर्देशित होते हुए।

ठोकरें सहनशील हो तो,
ज़ख्म भरने में‌ समय की व्यस्ता नहीं
ठोकरें पूर्वातीत का रूप लेते हुए,
संयमित व संतुलित
जिंदगी के सफर में कोई,
अड़चनें‌ बाधक न होती।

ठोकरें तो वही खाते,
जो नेकी-राह चलते हैं
अच्छे कामों की ठोकरें,
यदि कष्टदायी हों तो वो
भी सफलता का सुगम पथ ही।

ठोकरें जीवन की,
मूलभूत आधार
जो कभी ना होती,
असफलता की कगार।

ठोकरें मनुष्यता के कर्तव्य,
सुकर्म-थर्म के भाग्योदय संग
संस्कृति, सभ्यता व संस्कार में,
एक नव ज्योतिर्गमय का
आलोकित संचार है,
साहित्योन्मुक्त गगन के
परिंदे स्वरूप स्वछंद
उड़ान में गद्य-पद्य पंख लगाते।

ठोकरें संजीवनी-सी हो,
धन्य! धान्य! हो सार्थक हो।
जीवन के उत्सर्जन में
प्रवाहित होते हुए॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।

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