कुल पृष्ठ दर्शन : 95

You are currently viewing डीपफेक:सरकार की सख्ती जरूरी

डीपफेक:सरकार की सख्ती जरूरी

ललित गर्ग

दिल्ली
**************************************

‘डीपफेक’ व्यक्तिगत जीवन से आगे बढ़ कर अब राजनीतिक एवं वैश्विक सन्दर्भों के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। इक्कीसवीं सदी में कृत्रिम बौद्धिकता (एआई) तकनीक के आगमन ने अगर सुविधाओं के नए रास्ते खोले हैं तो दुनियाभर में चिंताएं भी बढ़ा दी हैं। इस तकनीक का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर शुरू हो चुका है। कृत्रिम बौद्धिकता के जरिए डीपफेक वीडियो बनाकर प्रसारित किए जा रहे हैं। गलत सूचनाएं, चलचित्र ध्वनि-दृश्य और तस्वीरें फैलाने वालों के हाथों में कृत्रिम बौद्धिकता ने खतरनाक उस्तरा थमा दिया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा एवं राजनीतिक मुद्दों के साथ व्यक्तिगत छवि को घूमिल करने का हथियार अनेक चिन्ताओं को बढ़ा रहा है और बड़े संकट का सबब बनता जा रहा है। डीपफेक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी नहीं बख्शा है, उन्हें भी परेशान कर दिया है। इसी तरह देश-विदेश की अनेक हस्तियों के अनेक अश्लील एवं राजनीतिक डीपफेक व्यापक स्तर पर प्रसारित हो रहे हैं।
यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें आप कृत्रिम बौद्धिकता की मदद एवं तकनीक से दृश्यता, तस्वीरों और चलचित्र ध्वनि-दृश्य में हेर-फेर कर सकते है। यानी आप किसी दूसरे व्यक्ति की तस्वीर पर किसी और का चेहरा लगाकर उसे पूरी तरह से बदल भी सकते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल लगभग ९६ प्रतिशत अश्लील सामग्री बनाने में होता है। कुछ लोग इसका इस्तेमाल मर चुके रिश्तेदारों की तस्वीरों को ऐनिमेट करने में भी करते हैं, लेकिन अब डीपफेक घटक का इस्तेमाल देश-विदेश की राजनीति में भी होने लगा है। राजनीतिक दल अपने चुनावी प्रचार में इस तकनीक का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। आम जनता को गुमराह करने, बड़ी हस्तियों की छवि एवं प्रतिष्ठा को धूमिल करने में इस तकनीक का व्यापक उपयोग होने लगा है। अनेक फिल्मी हस्तियों विशेषतः नायिकाओं की अविश्वसनीय अश्लील एवं नग्न चलचित्र बड़ी संख्या में आनलाइन आसानी से देखी जा सकती है। लोक मंच पर मौजूद चित्रों की मदद से आसानी से डीपफेक चलचित्र बनाया जा सकता है। ऐसे वक्त में किसी भी चलचित्र-दृश्य पर झट से भरोसा न करें, क्योंकि डीपफेक से घिरी आभासी दुनिया में आँखों देखा सब-कुछ हमेशा सच नहीं होता।
तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी डीपफेक को देश के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बता इसके खिलाफ जनता को शिक्षित एवं सावधान करने पर जोर दिया है। भारत के लिए यह बड़ा खतरा इसलिए भी है कि, भारत विविधता वाला देश है, यहां की जनता छोटी-छोटी बातों पर भावुक एवं भड़क जाती है। अतः, असली एवं नकली का पता लगाने के लिए सतर्कता एवं सावधानी बरतने की अपेक्षा है। अगर चलचित्र-दृश्य में आँख और नाक कहीं और जा रही है या पलक नहीं झपकाई गई है तो समझ जाइए यह डीपफेक घटक है। विशेषज्ञों का मानना है कि, जैसे-जैसे यह तकनीकी प्रसिद्ध होगी, इसका गलत इस्तेमाल और ऐसे अपराध भी बढ़ते जाएंगे।
कृत्रिम बुद्धि, संगणक विज्ञान की एक शाखा है जो मशीनों और सॉफ्टवेयर को बुद्धि के साथ विकसित करता है। १९५५ में जॉन मैकार्थी ने इसको कृत्रिम बुद्धि का नाम दिया। कृत्रिम बुद्धि अनुसंधान के लक्ष्यों में तर्क, ज्ञान की योजना, सीखने, धारणा और वस्तुओं में हेर-फेर करने की क्षमता आदि शामिल हैं। कृत्रिम बुद्धि का दावा इतना है कि, मानव की बुद्धि का एक केंद्रीय संपत्ति एक मशीन द्वारा अनुकरण कर सकता है।
बिजली के बल्ब और फिल्म कैमरे के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन ने कहा था कि, ‘हर नई तकनीक सुविधाओं के साथ कुछ नकारात्मक पहलू भी लाती है।’ नित नई तकनीक के दौर से गुजर रही दुनिया में उनका कथन प्रासंगिक बना हुआ है। कृत्रिम बौद्धिकता तकनीक के आगमन ने सुविधाओं के नए रास्ते खोले हैं तो दुनियाभर में चिंताएं भी बढ़ा दी हैं।
हाल ही में सामाजिक जनसंचार में अभिनेत्री रश्मिका मंदाना का एक चलचित्र प्रसारित हो रहा है, डीपफेक है। इसको लेकर महानायक अमिताभ बच्चन ने भी चिंता जताई है। इस पर दिल्ली महिला आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस में मामला दर्ज कराया है। इस मामले में गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
भारत में डीपफेक तकनीक का दुरूपयोग रोकने और फर्जी की पहचान के लिए बेहतर प्रौद्योगिकी विकसित करने की जरूरत है। चिंता की बात है कि, सामाजिक संचार मंचों और तकनीकी कंपनियों ने इस पर अंकुश के लिए कोई बड़ी पहल नहीं की है, लेकिन भारत सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है। सरकार अंतरजाल इस्तेमाल करने वाले सभी नागरकों की सुरक्षा और भरोसे को सुनिश्चित करने को लेकर प्रतिबद्ध है। सरकार ने अवांछित सामग्री की पहचान कर उन्हें हटाने के निर्देश दिए हैं। कई देशों की सरकारें डीपफेक के नियमन की तैयारी में हैं। कुछ अमरीकी राज्यों में बगैर सहमति डीपफेक बनाने को अपराध घोषित किया जा चुका है। यूरोपीय देशों में भी कानून बनाने की तैयारी चल रही है। जरूरत ऐसे तंत्र की है, जो डीपफेक की सतत निगरानी रख अवांछित सामग्री फैलाने के सभी रास्ते बंद रखे।