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तरस रही हूँ

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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मोम की तरह पूरी रात,
दिल रोशनी से पिघलता रहा
पर वो इस हसीन रात को,
नहीं आए मेरे दिल में
मैं जलती रही और,
नीचे फिर से जमती रही
फिर से उनके लिए जलने और,
उनके दिल में जमने के लिए।

हर रात का अब यही आलम है,
वो निगाहें और वो दरवाजा है
देखती रहती हैं निगाहें दरवाजे को,
शायद वो आज की रात आ जाए
इसलिए सज-सँवर कर बैठी हूँ,
चाँद के दीदार करने के लिए
और कब उनके स्पर्श से अपने,
आपको इस रात में महका सकूं।

इस सुंदर यौवन शरीर का क्या करुँ,
जो उन्हें आकर्षित नहीं कर सका
लाख मुझे लोग रूप की रानी और,
स्वर की कोकिला कहें पर
ये सब अब मेरे किस काम का है,
जो उन्हें अपनी तरफ ला न सका
इसलिए हर शाम से रात तक और,
फिर पूरी रात जलती और जमती हूँ।
ये मोहब्बत है या वियोग या,
और कुछ हम-आप इसे कहेंगे!!

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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