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तलाक पीड़िताओं के जीवन में आर्थिक उजाला

ललित गर्ग
दिल्ली

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के लिए ६ हजार रुपए सालाना की आर्थिक मदद की घोषणा करके उस नारी समाज को अधिकार सम्पन्न करने का मार्ग प्रशस्त किया है,जो पुरुषों के अन्याय का शिकार रहता आया है। चिन्मयानन्द के खिलाफ बलात्कार का आरोप हो या ‘हनीट्रैप’ जैसी घटनाएं-देखा जा रहा है कि किसी भी क्षेत्र में गलत हथकंडों में महिला का दुरुपयोग किया जाता है,शोषण किया जाता है,उनके जीवन निर्वाह को बाधित किया जाता है,इज्जत लूटी जाती है और हत्या कर देना मानो आम बात हो गई है। आखिर कब तक नारी को दोयम दर्जा दिया जाता रहेगा ? कब तक वह जुल्मों का शिकार होती रहेगी? कब तक अपनी मजबूरी का फायदा उठाने देती रहेंगी ? दिन-प्रतिदिन देश के चेहरे पर लगती यह कालिख कौन
पोंछेगा ? यह एक ऐसा सवाल है जो हर मोड़ पर खड़ा होता है और निरूत्तर रह जाता है, लेकिन अब फिजाएं बदल रही है,नयी सोच एवं नई दिशाएं उद्घाटित हो रही है। नारी जाति में अभिनव स्फूर्ति,अटूट आत्मविश्वास एवं गौरवमयी जीवनशैली को उकेरने वाला योगी सरकार का यह निर्णय देश और दुनिया की मुस्लिम महिलाओं को एक नयी दिशा प्रदत्त करेगा,ऐसी आशा है।
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ कहते हुए समाज में स्त्रियों के सम्मान की जो बात कही गई है,वैसा आज देखने को नहीं मिल रहा है,पर योगी सरकार ने एक अपवाद के रूप में न केवल मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को बल्कि इसके साथ ही हिन्दू समाज की परित्यक्ता नारियों को भी इतनी ही राशि की मदद देने का ऐलान करके सम्पूर्ण नारी समाज में उम्मीद की, सम्मानपूर्ण जीवन की एवं स्वाभिमान की संभावनाओं को प्रकट किया है। इससे सम्पूर्ण नारी समाज को न्याय मिलने की संभावना बढ़ेगी। तीन तलाक कानून पर भारत की संसद की मुहर लग जाने के बाद ये सवाल उठाये जा रहे थे कि सरकार ने इस प्रकार अपमानित व पीड़ित महिला के आत्म-सम्मान को तो सुरक्षित करने का प्रबंध किया,लेकिन उनके आर्थिक जीवन को आसान बनाने के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं किए,परन्तु श्री योगी के इस कदम से दूसरे राज्य भी प्रेरणा लेकर इसी प्रकार के फैसले करेंगे,इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। इससे नारी जीवन में एक नई भोर का आभास होगा। साथ ही श्री योगी ने ऐसी महिलाओं के शिक्षित होने पर उन्हें सरकारी नौकरियों में वरीयता देने और उनके बाल-बच्चों की निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था करने का भी वादा किया है। ठीक यही सुविधाएं उन हिन्दू औरतों को भी दी जायेंगी जिनके पतियों ने उन्हें छोड़ कर अवैध रूप से दूसरी महिला के साथ रहने का जुगाड़ लगा लिया है।
नारी को हाशिया नहीं,पूरा पृष्ठ चाहिए,क्योंकि नारी अपनी भीतर संपूर्णता को समेटे हुए जीवन की कठिनाइयों की राह पर अकेले आगे बढ़ते हुए पूरा सफर तय कर देती है। ना माथे पर शिकन,ना आँखों में शिकायत,बस होंठों पर मधुर मुस्कराहट बिखेरते हुए धैर्य की मूर्ति-सी प्रतीत होती है। भारत देश में नारी का स्थान सदा से ही ऊंचा रहा है। समय के साथ-साथ नारी ने अपनी भूमिका हर जगह पर निभाई है। सीता ने संपूर्ण नारी जाति को संस्कार व शालीनता की राह दिखाई तो रणक्षेत्र में दानवों का दलन करने वाली दुर्गा भी बनी। सावित्री बनकर यमराज को भी अपना निर्णय बदलने पर मजबूर कर दिया,तो युद्ध के मैदान में झांसी की रानी बनकर पूरी नारी जाति को अपने अंदर छिपी हुई असीम शक्ति को पहचानने के लिए भी प्रेरित किया,लेकिन मुस्लिम महिलाएं तो बस एक अबला-सी बन कर रह गयी। उन्होंने शायद धार्मिक स्थितियों के आगे समर्पण कर दिया था,पर भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है, वहां के जन-जीवन में नारी-नारी के बीच के भेद को समाप्त करने का जो वातावरण बना है,उसे अभी और आगे बढ़ाना है। मुस्लिम महिलाएं स्थितियों से समझौता नहीं,संघर्ष करें। सामने लंबा संघर्ष है,रास्ता भी कठिन है, लेकिन संघर्ष सफल भी होगा और कठिनाइयों के बीच से रास्ता भी निकलेगा। उसे उसका आसानी से हो रहा दुरुपयोग रोकना होगा,उसे नारी होने का रोना छोड़कर स्वयं अपने उत्थान के लिए आगे बढ़ना होगा और नारी होने का लाभ छोटे रास्ते से लेने की प्रवृत्ति भी छोड़नी होगी। मान्य सिद्धांत है कि आदर्श ऊपर से आते हैं,क्रांति नीचे से होती है,पर अब दोनों के अभाव में तीसरा विकल्प ‘औरत’ को ही ‘औरत’ के लिए जागना होगा।

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