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तुम्हारे जैसी नहीं पाई ‘माँ’

बबीता प्रजापति 
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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सर्दी में कम्बल,
तकिया और रजाई माँ
गोद तुम्हारी जब पाई,
खुलकर मुस्कुराई मैं माँ।

क्या चिंता दुनियादारी की,
छुप के तुम्हारे आँचल में
सारी दुनिया पाई माँ।

घना कुहासा जब छा जाता,
मोती बन पत्तों पर बिखर जाता
खेल-खेल में हम बाहर जाते,
घनी ओस को गले लगाते
डाँट तुम्हारी फिर हम खाते,
नादानियों पर हमारी
फिर तुम मुस्कराई माँ।

चाय बनाती,
लहसुन-मैथी का तेल लगाती
सिर से सरक न जाए टोप,
गाँठ लगा कर राहत पाती
ठंड कहीं से आए न,
पूरा ढक कर तब बाहर भिजवाती
टोप अगर हटाया तो,
खूब डाँट खाई माँ।

नज़र उतारे,
बलैया ले बलिहारे।
माँ तुम्हारे जैसी,
दुनिया नहीं पाई माँ॥