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तूलिका के रंग

डॉ. सुनीता श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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होली का त्यौहार नजदीक था, राशि सोच रही थी इस बार होली पर क्या किया जाए ?
घर में पारिवारिक बीमारी के कारण वैसे ही तंगी हो गई थी। उसे ध्यान आया, कुछ पुराने बर्तन पड़े थे, क्यूँ न इनको बेचकर कुछ खाने-पीने का समान ले आए ? यह सोचकर उसने सभी पुराने बर्तनों को थैले में रखना शुरू किया। तभी सुशोभित आ गया, बोला-“माँ यह क्या कर रही हो ?”
उसने उसे बताया, तो बोला,-” आप चिंता मत करो। बर्तन मत बेचो…। “
राशि ने प्रश्नवाचक निगाहों से देखा, तो मुस्करा कर बोला- “हाँ, रंग का इंतजाम कर लूँगा।”
राशि चुप होकर बर्तनों को वापस रखती हुई सोचने लगी, यह जाने क्या करेगा ? फिर उसका मन दुखी होगा, यह सोच अपने काम में लग गई। तो सुशोभित बोला-“माँ, थोड़ी हल्दी, रोली और मेंहदी आदि….देना।”
राशि ने कोई प्रश्न न कर उसे वह सब चीजें दे दी। वह कागज और ब्रश लेकर कुछ चित्र बनाने लगा। राशि उसे यूँ व्यस्त देख राहत महसूस करने लगी।
सुबह देखा तो उसने ३-४ पोट्रेट बना लिए थे। फिर सबको थैले में रख कर बोला- “माँ अभी आता हूँ, मुझे टोकना नहीं, खाना आकर खा लूँगा। देर हो, तो परेशान नहीं होना।” राशि निरुत्तर हो गई l
रात अधिक होने पर नींद आ गई। जब सुशोभित ने आकर उसे उठाया और कहा-“माँ, बहुत भूख लगी है, खाना दो।”
राशि ने उसे खाना दिया, तो वह बोला-“माँ यह पाँच हजार रुपए हैं, अब आप होली के लिए रंग, मिठाइयाँ खरीद लेना। और मेरी सारी पेंटिंग ५५०० में बिक गई है, ५००₹ पापा को दे दिए हैं।”
राशि तूलिका के रंगों के गुण को महसूस कर खुशी के रंगों से आनंदित हो उठी।