कुल पृष्ठ दर्शन : 132

दोनों को खुश करने में लगे हैं ट्रम्प

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************
ह्यूस्टन में नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प की संयुक्त सभा ने जो जलवा पैदा किया है, उससे इन दोनों नेताओं के अंदरुनी और बाहरी विरोधी-सभी हतप्रभ हैं। दोनों नेता प्रचार-कला के महापंडित हैं। दोनों एक-दूसरे के गुरु-शिष्य और शिष्य-गुरु हैं। दो देशों के नेता परस्पर कैसा भी व्यवहार करें,लेकिन उन दोनों देशों के संबंधों का निर्धारण उनके राष्ट्रहित ही करते हैं। ट्रम्प ने ह्यूस्टन में मोदी और भारत के लिए तारीफों के पुल बांध दिए लेकिन क्या यही उन्होंने इमरान खान के साथ नहीं किया ? जब इमरान उनसे न्यूयार्क में मिले तो उनकी हर अदा ऐसी थी,जैसे वे भारत और पाकिस्तान में कोई फर्क ही नहीं करते। जो लोग ह्यूस्टन की नौटंकी देखकर फूले नहीं समा रहे थे,वे ट्रम्प की इस अदा से पंचर हो गए। ट्रम्प ने मोदी और इमरान दोनों को महान बताकर भारत-पाक के बीच मध्यस्थता करने का राग दुबारा अलाप दिया। इतना ही नहीं,उन्होंने ह्यूस्टन में मोदी के भाषण को काफी ‘आक्रामक’ बता दिया। यह तो उन्होंने पत्रकारों को बताया लेकिन पत्रकारों को जो पता नहीं है याने इमरान को, पता नहीं,उन्होंने क्या-क्या उल्टा-सीधा घुमाया होगा जबकि ह्यूस्टन में मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ किसी आक्रामक शब्द का इस्तेमाल तो किया ही नहीं,घुमा-फिराकर उसका नाम लिये बिना उसकी कुछ आक्रामक प्रवृत्तियों का और उसकी मुश्किलों का जिक्र किया,जबकि खुद ट्रम्प महाशय ने ‘इस्लामिक टेररिज्म’ शब्द का इस्तेमाल किया। याने तालियां बजवाने की खातिर ट्रम्प कुछ भी बोल सकते हैं। ट्रम्प के इस तेवर का साफ-साफ विरोध इमरान खान ने ‘कौंसिल ऑफ फारेन रिलेशंस’ (न्यूयार्क) के अपने भाषण में कर दिया। इमरान को ट्रम्प का रवैया इतना अजीब लगा है कि उन्होंने यहां तक कह डाला कि (ट्रम्प को क्या पता नहीं है कि) “इस्लाम सिर्फ एक प्रकार का है। वह नरम या गरम नहीं है।” जब
ट्रम्प संयुक्त राष्ट्र संघ भवन में पत्रकारों के साथ खड़े थे तो ट्रम्प अपनी ही हांकते चले जा रहे थे। ट्रम्प ने कश्मीर के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आतंकवाद के हिसाब से क्या पाकिस्तान सबसे खतरनाक देश नहीं है,तो उन्होंने झट से ईरान का नाम ले दिया। वे भारत और पाकिस्तान दोनों को खुश करने में लगे हुए हैं। देखना यह है कि वे भारत-अमेरिका व्यापार के उलझे हुए सवालों पर क्या रवैया अपनाते हैं। ट्रम्प अमेरिका को बार-बार दुनिया का सबसे बड़ा महाशक्ति राष्ट्र घोषित करते रहते हैं तो फिर क्या वजह है कि वह सारे दक्षिण एशिया को महासंघ के एक सूत्र में बांधने का व्रत क्यों नहीं लेते ? सिर्फ अमेरिका के संकीर्ण और क्षुद्र स्वार्थों को सिद्ध करने में ही वे लीन क्यों हैं ?

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply