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वफ़ा का फ़साना

कैलाश झा ‘किंकर’
खगड़िया (बिहार)
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मुझे भी सुनाना,
वफ़ा का फ़साना।

न भूलूँ कभी मैं,
न मुझको भुलाना।

हुआ हूँ मैं तेरी,
नज़र का निशाना।

चलेगा न अब वो,
तुम्हारा बहाना।

मुहब्बत का दुश्मन,
है सारा ज़माना।

यकीनन तेरा मैं,
तू मेरा दिवाना।

न मायूस होकर,
तू आँसू बहाना ।

सुकूं दे रहा है,
तेरा हर तराना।

ग़मों में भी साथी,
तू हँसना-हँसाना।

जो तुमने किया था,
वो वादा निभाना।

नये रास्ते पर,
न तुम डगमगाना।

हूँ तुझसे मुख़ातिब,
नया है ठिकाना।

निगाहों में तेरी
मेरा आबो-दाना।

वफ़ाई में ‘किंकर’
है जीवन बिताना॥

परिचय-कैलाश झा का साहित्यिक उपनाम-किंकर है। जन्म १२ जनवरी १९६२ को पर्रा बेगूसराय(बिहार) में हुआ है। पैतृक गाँव-हरिपुर(खगड़िया) निवासी श्री झा वर्तमान में जिला खगड़िया(बिहार)में बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,अंगिका, मैथिली का है। आपकी शिक्षा-एम.ए. तथा एल.एल.बी. है। कार्यक्षेत्र-प्रधानाध्यापक (खगड़िया)का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप खगड़िया में साहित्यिक संस्था के संयोजक और मंच के महासचिव हैं। साथ ही एक पत्रिका के सम्पादक भी हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,ग़जल,लेख ,आलेख,कथा,लघुकथा,संस्मरण,समीक्षा एवं डायरी आदि है। प्रकाशित पुस्तकों में-‘हिन्दी कविता संग्रह-संदेश, दरकती जमीन,चलो पाठशाला,तीनों भुवन की स्वामिनी,कोई-कोई औरत और ईमान बचाए रखते हैं’ के अलावा  अंगिका संग्रह-‘जत्ते चलै चलैने जा,ओकरा कोय सनकैने छै,जानै जौ कि जानै जाता’ सहित ग़ज़ल संग्रह-‘हम नदी की धार में, देखकर हैरान हैं सब और मुझको अपना बना के लूटेगा’ आदि हैं। शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हैं। आकाशवाणी भागलपुर और दूरदर्शन पटना से रचनाएँ प्रसारित और कई भाषाओं में अनुवादित भी हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको बिहार,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं दिल्ली आदि की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। किंकर की विशेष उपलब्धि-मंत्रिमंडल सचिवालय (हिन्दी विभाग)बिहार सरकार द्वारा ग़ज़ल संग्रह-‘देखकर हैरान हैं सब’ को पांडुलिपि प्रकाशन अनुदान मिलना है। लेखनी का उद्देश्य-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव से भारतीय छंदों के प्रचार-प्रसार हेतु लेखन,प्रकाशन और आयोजन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’,महादेवी वर्मा, शिवपूजन सहाय,जानकी वल्लभ शास्त्री,सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, फणीश्वरनाथ रेणु और प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-पूनम कुमारी है। विशेषज्ञता -हँसी-मजाक पसंद होने से हास्य-व्यंग्य की ओर शुरू से झुकाव है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘स्वाधीनता की रोशनी को गाँव-घर तक ले चलें,
गुमनामियों में जी रहे अहले-हुनर तक ले चलें।
जब काव्य-पुष्प खिल जाएगा,
सबको जवाब मिल जाएगा।’

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