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दोस्ती चेहरे की मीठी मुस्कान होती है

राजकुमार जैन ‘राजन’
आकोला (राजस्थान)
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मनुष्य का जीवन संघर्षों से भरा पड़ा है। कदम-कदम पर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए किसी मित्र,सहयोगी की आवश्यकता होती है। कहा जाता है कि दोस्ती शब्द ‘दो+हस्ती’ से बना है। अर्थात जब दो हस्ती,दो शक्ति मिलती है तब मित्रता होती है। दोस्ती होने का सीधा अभिप्रायः है कि आपके पास अतिरिक्त शक्ति है जो वक्त-बेवक्त आपको व आपके परिवार को सहयोग,संरक्षण व सम्बल देगी। यही बात दो मित्र राष्ट्रों के लिए भी कही जा सकती है।
आपको सच्चा व अच्छा मित्र मिल गया तो समझ लीजिए कि आपको अपार शक्ति का भंडार मिल गया। एक बात सदैव याद रखें कि यदि स्वार्थ के वशीभूत कोई मित्रता संम्बंध कायम हुए हैं तो स्वार्थ पूरा होते ही उस मैत्री को भी समाप्त कर देना चाहिए। स्वार्थवश की गई मित्रता का स्थायी आधार नहीं होता। मित्रता में तो पारस्परिक सहयोग,त्याग और समर्पण का भाव निहित रहता है। प्रसिद्ध शायर शकील बदायुनी के शब्दों में मित्रता-
“मुझे दोस्त कहने वाले जरा दोस्ती निभा दे
ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिज़ा नहींl”
‘किसी को मत मारो’,यह एक सिद्धान्त है। ‘सबके साथ मित्रता रखो’, यह भी इसी की परिक्रमा किये चलता है। अहिंसा या मित्रता,मैत्री आत्मा का धर्म है। वह अकेले भी हो सकता है और समूह में भी। इसलिए कहा गया है कि,सबके साथ मैत्री करो। उपनिषद में लिखा है
“मित्रस्य चक्षुणा सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे”
अर्थात मित्रता का विकास होने से शक्तियां,अधिकार सुरक्षित रहते हैं । शत्रुता के भाव से अर्जित शक्तियां भी क्षीण हो जाती है। सहिष्णुता का जहां विकास होता है,वहीं पर मित्रता की भावना व्यवहारिक बन सकती है। हमारे विकास का आधार ही यही है कि हमने मित्रता में सदा सकारात्मक दृष्टि अपनाई है। आज विश्व में एक देश को दूसरे देश का भय नहीं रहे,तो राष्ट्र निर्माण का बहुत उत्कृष्टतम कार्य हो सकता है। शत्रुओं का मुकाबला करने में शक्ति का जो व्यय होता है उससे अनेक बड़े काम हो सकते हैं-
“कह रहीम संपत्ति सगे बनत बहुत बहु रीतl
विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही सांचे मीतll”
रहीम कहते हैं कि मनुष्य के पास जब तक धन,संपत्ति होती है तो उसके बहुत सारे सगे-संबंधी और संगी-साथी हो जाते हैं। वे अनेक रीतियों और तरीकों से उससे अपना संबंध जताने लगते हैं,लेकिन सच्चा मित्र तो वही है जो विपत्ति में भी साथ देता है या काम आता है। सच्चे या झूठे मित्रों की पहचान संकट के समय ही होती है।
उपरोक्त दोहे में रहीम ने अच्छे दिनों में फायदा उठाने वाले तथा बुरे दिनों में साथ छोड़ जाने वाले मित्रों की चर्चा करते हुए विपत्ति के समय को खरी व सच्ची मित्रता की परीक्षा के रूप में अभिव्यक्त किया है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में सच्चा व अच्छा मित्र मिल जाये,उसके लिए इससे बड़ी कोई उपलब्धि नहीं हो सकती है। मित्रता बड़ी नायाब चीज है,यह चाहे मनुष्यों में हो चाहे राष्ट्रों में,एक बार प्रगाढ़ मित्रता हो जाये तो उसे आजीवन निभाने का प्रयास करना चाहिए। सच्चा मित्र वही होता है,जो हमें कभी किसी की नज़रों में गिरने न दे,न कभी किसी के कदमों में गिरने दे। मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी ने क्या खूब कहा है-
“आ कि तुझ बिन,इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं,
जैसी हर शय मैं किसी शय की कमी पाता हूँ।”
जहां मनुष्य है,समाज है और परस्पर में आग्रह,विग्रह और संग्रह होता रहता है,वहाँ कटुता स्वाभाविक है। तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य भिक्षु ने अनुकम्पा की चौपाई में मित्रता बाबत कितनी सुंदर बात कही है-
“मित्री सूं मित्रीपणो चलियो जावे,
वेरी सूं वेरीपणो चलियो जावेl”
मित्र से मित्रता का अनुबंध और शत्रु से शत्रुता का अनुबंध चलता रहता है। जिसके साथ मित्रता का सम्बंध है,वह हमेशा संरक्षित, सुरक्षित व लाभ में रहता है,जबकि शत्रु हमेशा आशंकित ही रहता है। लोकप्रिय शायर बशीर बद्र ने भी इस बात का समर्थन किया है-
“दुश्मनी जम कर करो,लेकिन यह गुंजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जाएं,शर्मिंदा न होंl”
यह जीवन व्यवहार का एक कटु सत्य है कि बुरे दिनों में लोग मुँह फेर लेते हैं। सभी उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं। संस्कृत नीति-शास्त्र के एक श्लोक में दुष्टों और सज्जनों की मित्रता की तुलना इस प्रकार की गई है-
“प्रारंभगुर्वी क्षयिणी क्रमेण,लद्विपुरा वृद्धिमती च दिनस्य,
पूर्वार्ध परार्धभिन्ना छायेव मैत्री खलस जनाना।”
दुष्टों और सज्जनों की मित्रता दिन के पूर्वाद्ध और परार्धभाव की छाया की तरह होती है। सज्जनों की मित्रता धीरे-धीरे बढ़कर घनिष्ठ भी होती है और स्थाई भी। भारतीय संस्कृति में कृष्ण और सुदामा की मित्रता आज भी गर्व के साथ उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत की जाती है।
एक ओर द्वारकाधीश कृष्ण और दूसरी तरफ दीन-हीन करुण दशा वाला सुदामा,किंतु जब कृष्ण ने सुदामा की दीन दशा को देखा तो उनकी आँखों से अश्रुधार निकल पड़ी। उन्होंने कहा,-“मित्र ! तुम इतना कष्ट उठाते रहे हो। अब तक क्यों नहीं आए। इतना पराया क्यों समझा मुझे।” उन्होंने सुदामा को दीन स्थिति से उबारकर वैभवशाली बना दिया,तथा जब भी दोनों मिले तो बड़ी आत्मीयता के साथ मिले। मशहूर शायर साहिर लुधियानवी बहुत सुंदर बात कहते हैं-
“कौन रोता है किसी और की खातिर ऐ दोस्त,
सबको अपनी ही किसी बात पर रोना आया।”
कहा जाता है कि,-“जब मित्र प्रगति कर रहा हो तो गर्व से कहो कि वह हमारा मित्र है,किंतु जब वह मित्र मुसीबत में हो तो कहो,हम उसके मित्र हैंl” वास्तव में मित्रता बिना कुंडली मिलाए,बिना पंडित से पूछे,बिना गुण मिलान किये,बिना इष्ट-आराध्य के स्थापित होने और आजीवन रहने वाला संम्बंध है। कहते हैं कि प्लम्बर चाहे कितना ही कुशल क्यों न हो,वह आँखों से टपकते हुए पानी को बन्द नहीं कर सकता। उसके लिए तो मित्र ही चाहिए। हर दुःख-दर्द में काम आने वाला,सहयोग करने वाला ही सच्चा व अच्छा मित्र होता है। सच्ची मित्रता में छोटी-छोटी बातों को लेकर कोई दरार नहीं आनी चाहिए। इस खूबसूरत रिश्ते को हर कीमत पर उम्र भर निभाने का प्रयत्न करना चाहिए। मित्र की और कभी शंका की दृष्टि नहीं होनी चाहिए-
“दुश्मनी लाख सही,खत्म न कीजिए रिश्ता,
दिल मिले न मिले,हाथ मिलाते रहिए।”
मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली की ये पंक्तियां महज़ शेरो-शायरी का हिस्सा नहीं है। मुलाकातों और बातचीत से तो बड़ी-बड़ी बातें टल जाती है। एक-दूसरे के संम्बंधों पर बरसों की जमी बर्फ महज एक मुलाकात में पिघलती नज़र आती है,और मित्रता संम्बंध प्रगाढ़ होते होने लगते हैं। यह अनुभव सिद्ध सांसारिक व्यवहार का निचोड़ है कि अच्छे दिनों में सगे बनने वाले बुरे दिनों में साथ छोड़ जाते हैं। जरूरत के समय जो मैत्री निभाता है,वही सच्चा मित्र है-
“दोस्ती चेहरे की मीठी मुस्कान होती है,
दोस्ती सुख-दुःख की पहचान होती हैl”

परिचय-राजकुमार जैन का उपनाम ‘राजन’ है। आकोला(राजस्थान)में २४ जून को जन्में श्री जैन की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी)है। लेखन विधा-कहानी, कविता है,जिसमें पर्यटन,लोक जीवन एवं बाल साहित्य प्रमुख है। आपका निवास आकोला में है। आपकी अनेक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है, जिसमें-‘नेक हंस’ और ‘लाख टके की बात’ आदि प्रमुख है। हिन्दी सहित राजस्थानी, अंग्रेजी में भी बाल साहित्य की इनकी ३६ पुस्तकों का प्रकाशन हों चुका है,तो हिंदी बाल कहानियों का मराठी अनुवाद २० पुस्तकों में प्रकाशित हों गया है। विशेष रुप से ‘खोजना होगा अमृत कलश’ (कविता संग्रह) पंजाबी,मराठी,गुजराती सहित नेपाली एवं सिंहली में अनुदित होकर श्रीलंका से प्रकाशित हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित करा चुके श्री जैन की रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी व दूरदर्शन सहित विभिन्न चैनल्स से हो चुका है। आपने सम्पादन के क्षेत्र में ‘रॉकेट'(बाल मासिक),’श्रमनस्वर’,’टाबर टोली’ एवं ‘हिमालिनी'(नेपाल)पत्रिकाओं को सहयोग दिया है। ‘राजन’ नाम से प्रसिद्ध बाल रचनाकार कईं मासिक पत्रिकाओं के सम्पादक रह चुके हैं। अनुवाद के निमित्त- ‘सबसे अच्छा उपहार’ बाल कहानी संग्रह पंजाबी,मराठी,उड़िया,गुजराती और अंग्रेजी में अनुदित हुआ है। हिन्दी बाल साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तक पर संस्थापक के रुप में आप प्रति वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर २१ हजार रूपए का ‘पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार’(११ वर्ष से सतत) और ५ हजार राशि के सम्मान देते हैं। ‘राजकुमार जैन राजन फाउण्डेशन’ की स्थापना करने के साथ ही आप साहित्य,शिक्षा,सेवा एवं चिकित्सा में निरन्तर सक्रिय हैं। आपको प्रमुख पुरस्कार और सम्मान में उदयपुर से ‘राजसिंह अवार्ड’ (२ बार),’शकुन्तला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार’,राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (राज. सरकार),‘जवाहर लाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार’,गिरिराज शर्मा स्मृति सम्मान,जयपुर द्वारा ‘समाज रत्न-२०१६’ और भारत-नेपाल मैत्री संघ द्वारा साहित्य सेतु सम्मान-२०१८ सहित १०१ से अधिक पुरस्कार-सम्मान प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। श्री जैन ने विदेश यात्रा में अमेरिका,कनाडा, मॉरीशस,मलेशिया,थाईलेंड,श्रीलंका और नेपाल आदि का भ्रमण किया है। आप विशेष रुप से हिन्दी के प्रचार-प्रसार सहित बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं।

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