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धरती माँ की पुकार

जसवंतलाल खटीक
राजसमन्द(राजस्थान)
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विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष……………

धरती माँ,की आँख में,आँसू,
वो चीख-चीख,कर कहती है।
क्यों,जहर मुझमें,घोल रहे हो,
मुझमें,सारी दुनिया रहती हैll

तुम थोड़े से,लोभ-लालच में,
कल-कारखाने,चलाते हो।
विषैले धुँए,और रसायनों से,
क्यों,तुम मुझको जलाते होll

जब,कूड़े-कचरे वाला पानी,
मेरी रगों,में बहता है।
मेरा,दर्द! तुम क्या जानोगे,
मेरा दम,घुटता रहता हैll

पेड़-पौधे,कटते जा रहे,
विकास,की बलिवेदी पर।
दिनों-दिन,जल रही हूँ,मैं,
ग्लोबल वार्मिंग,का है असरll

जल,ध्वनि,वायु प्रदूषण,
इनसे,मेरा अस्तित्व संकट में।
सब पर,रोकथाम कर लो,वरना,
समा जाऊँगी,मैं,मिनट मेंll

जसवंत,करे करबद्ध विनती,
धरती माँ को बचाना होगा।
भावी पीढ़ी,के भविष्य के लिए,
पर्यावरण हमें बचाना होगाll

 

परिचय-जसवंतलाल बोलीवाल (खटीक) की शिक्षा बी.टेक.(सी.एस.)है। आपका व्यवसाय किराना दुकान है। निवास गाँव-रतना का गुड़ा(जिला-राजसमन्द, राजस्थान)में है। काव्य गोष्ठी मंच-राजसमन्द से जुड़े हुए श्री खटीक पेशे से सॉफ्टवेयर अभियंता होकर कुछ साल तक उदयपुर में निजी संस्थान में सूचना तकनीकी प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे हैं। कुछ समय पहले ही आपने शौक से लेखन शुरू किया,और अब तक ६५ से ज्यादा कविता लिख ली हैं। हिंदी और राजस्थानी भाषा में रचनाएँ लिखते हैं। समसामयिक और वर्तमान परिस्थियों पर लिखने का शौक है। समय-समय पर समाजसेवा के अंतर्गत विद्यालय में बच्चों की मदद करता रहते हैं। इनकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं।

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