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चलो….अब भूल जाते हैं

मालती मिश्रा ‘मयंती’
दिल्ली
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जीवन के पल जो काँटों से चुभते हों,
जो अज्ञान अँधेरा बन
मन में अँधियारा भरता हो,
पल-पल चुभते काँटों के
जख़्मों पे मरहम लगाते हैं,
मन के अँधियारे को
ज्ञान की रोशनी बिखेर भगाते हैं,
चलो!
सब शिकवे-गिले मिटाते हैं
चलो….
सब भूल जाते हैं…ll

अपनों के दिए कड़वे अहसास,
दर्द टूटने का विश्वास
पल-पल तन्हाई की मार,
अविरल बहती वो अश्रुधार
भूल सभी कड़वे अहसास,
फिर से विश्वास जगाते हैं
पोंछ दर्द के अश्रु पुनः,
अधरों पर मुस्कान सजाते हैं
चलो!
सब शिकवे-गिले मिटाते हैं,
चलो…
सब भूल जाते हैं…ll

अपनों के बीच में रहकर भी,
परायेपन का दंश सहा
अपमान मिला हर क्षण जहाँ,
मान से झोली रिक्त रहा
उन परायेसम अपनों पर,
हम प्रेमसुधा बरसाते हैं
संताप मिला जो खोकर मान
अब उन्हें नहीं दुहराते हैं,
चलो!
सब शिकवे-गिले मिटाते हैं,
चलो…
सब भूल जाते हैं…ll

परिचय-मालती मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘मयंती’ है। ३० अक्टूबर १९७७ को उत्तर प्रदेश केसंत कबीर नगर में जन्मीं हैं। वर्तमान में दिल्ली में बसी हुई हैं। मालती मिश्रा की शिक्षा-स्नातकोत्तर (हिन्दी)और कार्यक्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप साहित्य सेवा में सक्रिय हैं तो लेखन विधा-काव्य(छंदमुक्त, छंदाधारित),कहानी और लेख है।भाषा ज्ञान-हिन्दी तथा अंग्रेजी का है। २ एकल पुस्तकें-अन्तर्ध्वनि (काव्य संग्रह) और इंतजार (कहानी संग्रह) प्रकाशित है तो ३ साझा संग्रह में भी रचना है। कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य व लेख प्रकाशित होते रहते हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा,हिन्दी भाषा का प्रसार तथा नारी जागरूकता है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-अन्तर्मन से स्वतः प्रेरित होना है।विशेषज्ञता-कहानी लेखन में है तो रुचि-पठन-पाठन में है।

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