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नया रास्ता

सविता सिंह दास सवि
तेजपुर(असम)

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पढ़ाई पूरी हो चुकी थी,राहुल अब दिन-रात नौकरी की तलाश में भटक रहा था,पर इस प्रतिस्पर्धा के जमाने में कुछ भी हासिल करना आसान नहीं था। उसे अपना जीवन व्यर्थ लगने लगा था। शायद वह डिप्रेशन का शिकार हो रहा था। कभी-कभी दिनभर खिड़की के बाहर देखता रहता,या औंधे मुँह बिस्तर में पड़ा रहता। सोनिया से ये सब देखा नहीं जा रहा था,बड़ी बहन होने के नाते वह चाहती थी कि उसका भाई हर हाल में खुश रहे। उसका मूड ठीक करने के लिए सोनिया ने उसके भाई का गिटार उठाया और उसे थमाते हुए कहा-“चल भाई,आज फिर जुगलबंदी हो जाएl” “नहीं,मेरा मन नहीं कर रहाl” अनमने से राहुल ने कहा। “ऐसे दुखी आत्मा जैसे क्यूँ बैठा रहता है ?” सोनिया ने अपने भाई से पूछा। “चल मेरा दिमाग खराब मत कर,कोई गाना-वाना मुझे नहीं गाना।” गिटार को पटकते हुए राहुल दूसरे कमरे में चल दिया। राहुल को अपना जीवन बेकार लगने लगा था। उधर सोनिया ने मन ही मन एक योजना बनाई। अगली सुबह सोनिया ने राहुल से कहा-“जल्दी-जल्दी तैयार हो जा,कहीं घूम कर आते हैं।” कहाँ ? राहुल ने पूछा। “तू चल तो सहीl” कुछ देर बाद सोनिया राहुल को लेकर एक अनाथालय पहुँची। क्रम से सजाए हुए पालनों में ढेर सारे नवजात शिशु बिलख रहे थे। कुछ लड़कियां उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रही थी। राहुल चकित होकर सब देख रहा था। यूँ ही आगे बढ़ते हुए उसने देखा एक पालने में एक दस-ग्यारह साल की बच्ची लेटी हुई है। उसके हाथ-पैर अजीब तरह से मुड़े हुए थे। वो जैसे राहुल को घूर रही थी। राहुल ने देखा कि उसके गाल पर मक्खी बैठी हुई हैl मक्खी कभी उड़ कर उसकी नाक पर बैठती तो कभी उसके माथे पर,पर वह तो उसे उड़ा भी नहीं रही थी। बहुत अजीब लगा राहुल को,वो उसके सामने गया और अपने हाथों से मक्खी को भगा दियाl वह बच्ची धीरे से मुस्कुराई। राहुल ने अनाथ आलय के एक कार्यकर्ता से पूछा-“यह बच्ची ऐसे कैसे पड़ी रहती है ? अपने चेहरे पर बैठी मक्खी भी नहीं उड़ा सकती ?” “उसे लकवा है।” कार्यकर्ता ने धीरे से जवाब दिया। “उसका पूरा बदन लकवे का शिकार है,वो सिर्फ पलक झपका सकती है,और मुस्कुरा सकती है।” राहुल स्तंभित-सा खड़ा रह गया। उसने देखा कि वह लड़की फिर उसे देख मुस्कुरा रही है। उसकी आँखें नम हो गई। वह सोचने लगा कि उस लड़की को सिर्फ मुस्कुराने और पलक झपकाने का अवसर मिला है। कुछ भी तो नहीं उसके जीवन में,और मैं ? हट्टा-कट्टा नौजवान पछतावे के साथ जीवन जी रहा हूँ। संताप-सा उसके मन में जागा। उस रात आँखों ही आँखों में उसने रात गुजार दी। सुबह वह जल्दी उठ गया,नहा-धोकर नाश्ता किया और अपनी गिटार ढूँढने लगा। सोनिया ने हाथ में गिटार थमाते हुए पूछा-“आज गिटार से क्या काम ?” “आज उनके साथ जुगलबंदी है,जिनको हर सुर गाने का अवसर नहीं मिला,पर उन्होंने मेरे जीने का लक्ष्य मुझे दे दिया।” यह कहते हुए राहुल उम्मीद के साथ अनाथालय की ओर चल पड़ा।

परिचय-सवितासिंह दास का साहित्यिक उपनाम `सवि` हैl जन्म ६ अगस्त १९७७ को असम स्थित तेज़पुर में हुआ हैl वर्तमान में तेजपुर(जिला-शोणितपुर,असम)में ही बसी हुई हैंl असम प्रदेश की सवि ने स्नातक(दर्शनशास्त्र),बी. एड., स्नातकोत्तर(हिंदी) और डी.एल.एड. की शिक्षा प्राप्त की हैl आपका कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में शिक्षिका का है। लेखन विधा-काव्य है,जबकि हिंदी,अंग्रेज़ी,असमिया और बंगाली भाषा का ज्ञान हैl रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में जारी हैl इनको प्राप्त सम्मान में काव्य रंगोली साहित्य भूषण-२०१८ प्रमुख हैl श्रीमती दास की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार करना है। आपकी रुचि-पढ़ाने, समाजसेवा एवं साहित्य में हैl

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