कुल पृष्ठ दर्शन : 525

You are currently viewing नर-नारी अब समान

नर-नारी अब समान

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
********************************

नर-नारी अब एक समान,
दोनों के ही एक परिधान,
सिंदूर न टीके का ध्यान,
दिन और रात एक समान।

बदला जीवन विधि-विधान,
माता-पिता को है संज्ञान
विश्व में चलन चढ़ा परवान,
नया ज्ञान है, नया विज्ञान।
नर-नारी अब एक समान…

पाश्चात्य अब हुआ महान,
नहीं कहीं अब मान-सम्मान
तुम्हारी बीबी उसके प्राण,
देख के निकले दूजे जान।
नर-नारी अब एक समान…

मर्यादा का बिगड़ा मान,
है संस्कार अब अंतर्ध्यान
संस्कारी होते गुणवान,
दंभ में बुझते खुद बलवान।
नर-नारी अब एक समान…

रहा न सत्य, सनातन शान,
कुत्ते, बिल्ली पुत्र समान
माता-पिता को है अभिमान,
अमरीका, लंदन करें गुणगान।
नर-नारी अब एक समान…

पुत्र हो गया कृपा निधान,
छोड़ा भारत, भुला प्रणाम
माता-पिता का काम तमाम,
बूढ़े माता-पिता करें आराम।
नर-नारी अब एक समान…

न मचाएं हल्ला-कोहराम,
जीते-मरते, जय सिया राम
बच्चों को है कौन-सा काम,
माँ की कुटिया करे नीलाम।
नर-नारी अब एक समान…

बीबी को ही करे सलाम,
पाश्चात्य यही दुष्परिणाम
लक्ष्मी-सरस्वती वो रूप महान,
माँस-मदिरा का रसपान।
नर-नारी अब एक समान…

पिज्जा-बर्गर है खान-पान,
गाँव की सारी बंद दुकान
जर्जर हो गए सभी गोदाम,
मिट गए सारे अमर निशान।
नर-नारी अब एक समान…

विलुप्त संस्कारी नाम निशान,
नहीं रही अब कहीं लगाम
नया दौर है, नए आयाम,
चलो बचाएं अपना अभिमान।
नर-नारी अब एक समान…

लौट चलें अब गाँव-जहान,
जप लो यारों, जय-जय राम।
होगा तब जग का कल्याण,
जब सब बन जाएँ इन्सान।
नर-नारी अब एक समान…॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज-
पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”