डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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क्या सोचा था,
क्या है पाया
क्या कहना है,
समझ ना आया।
संयम से धागे को पिरोना,
टूट ना जाए रिश्तों का कोना
बाद में नहीं पडे़ पछताना,
यह बात है खुद को समझाना।
सुख-दु:ख का ये ताना-बाना,
मानो साँसों का आना-जाना
क्यों रे मन तू हिसाब रखता,
क्या खोना और क्या है पाना।
आगे बढ़ काम करते जाना,
फल की चिंता नाहक करना
सलिला प्रवाह-सा बहते रहना,
तन-मन को न जंग लगाना।
ये जीवन है एक वरदान,
मिले हमेशा सच्चा ज्ञान।
अदभुत है इसकी रचना,
बनाकर रखना इसका मान॥