राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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बाँट रहा था मैं ज्ञान,
सप्ताह के छह दिन
हर दिन के छह घंटे,
बच्चों पर रहा ध्यान।
जीवन में था मेरा सम्मान,
चल रहा था हर्षित जहान
चलते-चलते लगा है ग्रहण,
अब होता नहीं मुझे सहन।
देखते-देखते शाम हो गई,
सबेरा बीता मध्यान्ह खो गया
दिन ढल गया व रात हो गई,
अंधेरा छाया-प्रकाश खो गया।
बच्चों का साथ छूटा,
मोबाइल से वह जुटा
देखते-देखते हर्ष टूटा,
‘कोरोना’ ने है मुझे लूटा।
विद्यालय अब जाता नहीं,
बच्चों को भी बुलाता नहीं
हाथ हो गया है पूरा खाली,
कैसे बजाऊँ अब मैं ताली।
सोचा मैं हाथ उधार माँग लूँ,
माँगे हाथ से ताली बजा लूँ
बीच में आ गया स्वाभिमान,
किसी तरह बचाएंगे सम्मान।
फिर चाहा मैं राह मोड़ लूँ,
अन्य से मैं नाता जोड़ लूँ
पर राह से था मैं अनजान,
टूट गया फिर मेरा ध्यान।
मेरा विद्यालय है छोटा,
ना ही मैं हूँ काफी मोटा
पर चलता था सम्मान से,
बाँटता था ज्ञान ध्यान से।
मेरा जीवन चल रहा पीछे,
ईश्वर जाने कब चलूँगा आगे।
मेरा नहीं खड़ा कोई भी रक्षक,
मैं निजी विद्यालय का शिक्षक॥
परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।