ललित गर्ग
दिल्ली
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नारी और जीवन (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)….
नारी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन तथा मातृशक्ति की अभिवंदना का एक स्वर्णिम अवसर है ‘विश्व नारी दिवस।’ यह नारी की महिमा को उजागर करने वाला ऐतिहासिक दिन है। आखिर नारी को ही ‘माँ’ का महत्वपूर्ण पद और संबोधन मिला। कारण की मीमांसा करते हुए अनुभवविदों ने बताया-हमारी भारतीय परंपरा में भारतमाता,राजमाता,गौमाता की तरह धरती को भी माता कहा जाता है। वह इसलिए कि धरती पैदा करती है। वह निर्मात्री है, सृष्टा है,संरक्षण देती है,पोषण करती है,बीज को विस्तार देती है,अनाम उत्सर्ग करती है,समर्पण का सितार बजाती है,आश्रम देती है,ममता के आँचल में सबको समेट लेती है और सब कुछ चुपचाप सह लेती है। इसीलिए उसे ‘माता’ का गौरवपूर्ण पद मिला। माँ की भूमिका यही है।
‘मातृदेवो भवः’ यह सूक्त भारतीय संस्कृति का परिचय-पत्र है। साधना से अभिसिंचित इस धरती के जर्रे-जर्रे में गुरु,अतिथि आदि की तरह नारी भी देवरूप में प्रतिष्ठित रही है। प्रारंभ से ही यहाँ ‘नारी शक्ति’ की पूजा होती आई है,पर फिर क्यों नारी अत्याचार बढ़ रहे हैं ? वैदिक परंपरा दुर्गा,सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में,बौद्ध अनुयायी चिरंतन शक्ति प्रज्ञा के रूप में और जैन धर्म में श्रुतदेवी और शासनदेवी के रूप में नारी की आराधना होती है। फिर क्यों नारी की अवमानना होती है ?
नारी का दुनिया में सर्वाधिक गौरवपूर्ण सम्मानजनक स्थान है। नारी धरती की धुरा है। स्नेह का स्रोत है। पवित्रता का पैगाम है। उसके स्नेहिल साए में जिस सुरक्षा,शाीतलता और शांति की अनुभूति होती है वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। सुप्रसिद्ध कवियित्री महादेवी वर्मा ने ठीक कहा था-‘नारी सत्यं,शिवं और सुंदर का प्रतीक है। उसमें नारी का रूप ही सत्य,वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है। इन विलक्षणताओं और आदर्श गुणों को धारण करने वाली नारी फिर क्यों बार-बार छली जाती है,लूटी जाती है ?
एक टीस सी मन में उठती है कि आखिर नारी का जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा। बलात्कार, छेड़खानी,भ्रूण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी ? अनेक शक्ल में नारी के वजूद को धुंधलाने की घटनाएं,मानो आम बात हो गई हो। न मालूम कितनी महिलाएं,कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी। दिन-प्रतिदिन देश के चेहरे पर लगती इस कालिख को कौन पोंछेगा ? कौन रोकेगा ऐसे लोगों को,जो इस तरह के जघन्य अपराध करते हैं,नारी को अपमानित करते हैं।
औरत जन्मती नहीं,बना दी जाती है,यह कहावत प्रचलित है और कई कट्टर मान्यता वाले औरत को मर्द की खेती समझते हैं। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हारती रही है। इसलिए आज की औरत को हाशिया नहीं,पूरा पृष्ठ चाहिए,पर विडम्बना है कि उसके हिस्से के पृष्ठों को धार्मिकता के नाम पर ‘धर्मग्रंथ’ एवं सामाजिकता के नाम पर ‘खाप पंचायतें’ घेरे बैठे हैं। पुरुष-समाज को उन आदतों,वृत्तियों, महत्वाकांक्षाओं,वासनाओं एवं कट्टरताओं को अलविदा कहना ही होगा जिनका हाथ पकड़कर वे उस ढलान में उतर गए,जहां रफ्तार तेज है और विवेक अनियंत्रण है। परिणाम है नारी पर हो रहे नित-नए अपराध और अत्याचार।
नारी जाति को अपनी विशेषताओं से ही नहीं, बल्कि अपनी कमजोरियों से भी अवगत होना होगा। नारी को अपने-आपसे रूबरू होना होगा।
हम बदलना शुरू करें अपना चिंतन,विचार, व्यवहार,कर्म और भाव।
जिस घर में नारी सुघड़,समझदार,शालीन,शिक्षित, संयत एंव संस्कारी होती है,वह घर स्वर्ग से भी ज्यादा सुंदर लगता है क्योंकि वहाँ प्रेम है,सम्मान है, सुख है,शांति है,सामंजस्य है। सुख-दुख की सहभागिता है। एक दूसरे को समझने और सहने की विनम्रता है।
नारी अनेेक रूप में जीवित है। अपने घर में अपने आदर्शों,सिद्धांतों एवं अनुशासन को सुदृढ़ता दे सकें,इसके लिए उसे कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना होगा। नारी अपने परिवार में सबका सुख-दुख अपना सुख-दु:ख माने। सबके प्रति बिना भेदभाव के स्नेह रखे। सबंधों की हर इकाई के साथ तादात्मय संबंध जोड़े। अच्छाईयों का योगक्षेम करें एंव बुराइयों के परिष्कार में पुरषार्थी प्रयत्न करें। सबका दिल और दिमाग जीतकर ही नारी घर में सुखी रह सकती है।
बदलते परिवेश में आधुनिक महिलाओं के लिए यह आवश्यक है कि एक ऐसा सेतु बने जो टूटते हुए को जोड़ सके,रुकते हुए को मोड़ सके और गिरते हुए को उठा सके। जननी एक ऐसे घर का निर्माण करे जिसमें प्यार की छत हो,विश्वास की दीवारें हों, सहयोग के दरवाजे हों और समता की फुलवारी हो। उसका पवित्र आँचल सबके लिए स्नेह,सुरक्षा, सुविधा,स्वतंत्रता और शांति का आश्रय स्थल बने, ताकि इस सृष्टि में बलात्कार,नारी उत्पीड़न जैसे शब्दों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।