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नेता वह जो चट्टान की तरह अड़ा रहे

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अजीब-सी नौटंकी में फसे हुए हैं। यदि उन्हें अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना ही है तो फिर वे मान-मनौव्वल के दौर में क्यों फंसे हैं ? चार-छह दिन ऐसी खबरें छपती रहें कि वे किसी की भी नहीं सुन रहे हैं और फिर अचानक खबर छपे कि वे अध्यक्ष पद पर बने रहने के आग्रह को मान गए हैं,तो राहुल की कितनी मजाक बनेगी। जिन प्रदेशाध्यक्षों ने हार के बाद इस्तीफे दिए हैं,वे अपने नेता के बारे में क्या सोचेंगे ? राहुल ने अभी तक नए अध्यक्ष की घोषणा क्यों नहीं की ? अभी तो इसी खबर पर लोग हँस रहे हैं कि राहुल ने कार्यसमिति की बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ की इसलिए निंदा की कि वे अपने बेटों के लिए टिकिट मांगकर ले गए। क्या यह तर्क कभी राहुल ने खुद पर लागू किया ? सोनिया गांधी ने अपने बेटे को पार्टी का अध्यक्ष कैसे बनाया,क्यों बनाया ? देश के लाखों कांग्रेसियों और सैकड़ों बड़े नेताओं में उन्हें क्या अकेले राहुल ही इस पद के योग्य दिखे ?,और फिर अपनी बेटी प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस का महासचिव क्यों बना दिया ? सिर्फ इसलिए कि वह पूर्व अध्यक्ष की बेटी और वर्तमान अध्यक्ष की बहन है। हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां अब प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बनती जा रही हैं,यह कथन अब स्वयंसिद्ध हो रहा है। कोई भाई-भाई पार्टी है,कोई माँ-बेटा पार्टी है,कोई बाप-बेटा पार्टी है,कोई बुआ-भतीजा पार्टी है। इन पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का दम घुटता जा रहा है। इनकी कार्यसमितियों में किसी मुद्दे पर दो-टूक बहस नहीं होती। बिगाड़ के डर से कोई ईमान की बात नहीं कहता। यही बीमारी हमारी संसद को घेरे हुए हैं। उसमें बोलनेवाले सांसद अपने विरोधियों पर तो अंधाधुंध प्रहार करते हैं लेकिन अपनी सरकार या अपनी पार्टियों की गलतियों पर आँख मींचें रहते हैं। यदि कांग्रेस में आतंरिक लोकतंत्र होता तो चुनाव-अभियान के दौरान ही कांग्रेस के बुजुर्ग नेता राहुल को फटकारते और उससे मर्यादित व्यवहार की मांग करते। राहुल ने मोदी की नकल करने की कोशिश की। जनेऊ,पूजा-पाठ,गौत्र-पाठ आदि क्या हैं ? किसी भी अनुभवी नेता ने राहुल को बरजा क्यों नहीं ? अब अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से क्या होगा ? आप रणछोड़दास कहलाएँगे या नहीं ? पराजय की इस बेला में राहुल सीना तानकर डटे,कांग्रेस में जान फूंके,भाषण देना सीखे,थोड़ा पढ़े-लिखे और देश में जन-जागरण और जन-आंदोलन की लहर फैला दे तो भारतीय लोकतंत्र का बहुत कल्याण होगा ? जो हारकर भाग खड़ा हो,उसे नेता कौन मानेगा ? नेता वह है,जो प्रतिकूल परिस्थिति में भी चट्टान की तरह अड़ा रहे।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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