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स्वप्न फिर दिखाया

मनोज जैन ‘मधुर’
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
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फतह,किया
राजा ने
एक किला और।

दिग्विजयी होने का
भाव छटपटाया।
प्रतिरोधी आँधी को
राव ने दबाया।

अब भी है समय,
हमें मानो
सिरमौर।

रणभेरी बजी खूब,
देखकर सुभीता।
कुटिल चाल चली,
युद्ध राजा ने जीता।

परजा ने,
फिर ढूँढा
एक नया ठौर।

क्षत्रप सब राजा के
संग साथ नाचें।
परजा के हाव-भाव
एक-एक जाँचे।

आया जी,
चमचों का
कैसा यह दौर।

हँसी-खुशी आका को,
बोलो कब भाती।
राज करो फूट डाल
नीति ही सुहाती।

बात रही
इतनी-सी,
फरमाना गौर।

कौन यहाँ सच कहने
सुनने का आदी।
पीटे जा राज पुरुष,
जोर से मुनादी।

पसरेंगे
पैर नहीं,
छोटी है सौर!

युग बीता अच्छा दिन
एक नहीं आया।
ज्ञानी ने मूरख को,
स्वप्न फिर दिखाया।

भूखों को,
घी चुपड़े
डाल रहा कौर।

परिचय-मनोज जैन का जन्म २५ दिसम्बर १९७५ का है। आपका निवास ग्राम-बामौरकलां(शिवपुरी, (म.प्र.)है। उपनाम ‘मधुर’ लगाते हैं। आप फिलहाल मध्यप्रदेश की इन्दिरा कॉलोनी(बाग़ उमराव दूल्हा)भोपाल में रहते हैं। पेशे से निजी संस्थान में क्षेत्रीय विक्रय प्रबंधक श्री जैन ने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर की शिक्षा पाई है। आपकी प्रकाशित कृति-‘एक बूँद हम'(गीत संग्रह),’काव्य अमृत'(साझा काव्य संग्रह)सहित अन्य है। विविध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन होता रहता है। दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी रचनाएँ प्रसारित हुई हैं। संकलित प्रकाशन में ‘धार पर हम-२’, ‘नवगीत नई दस्तकें’ एवं ‘नवगीत के नए प्रतिमान’ (शोध सन्दर्भ ग्रन्थ)आदि प्रमुख हैं। दो गीत संग्रह,पुष्पगिरि खण्डकाव्य सहित बाल कविताओं का संग्रह तथा एक दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन है। आपको मिले १५ सम्मानों में खास मध्यप्रदेश के राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक नागरिक सम्मान (२००९),शिरढोणकर स्मृति सम्मान,म. प्र. लेखक संघ का रामपूजन मलिक नवोदित गीतकार-प्रथम पुरस्कार (२०१०) और अभा भाषा साहित्य सम्मेलन का साहित्यसेवी सम्मान, २०१७ में ‘अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान’ और राष्ट्रीय नटवर गीतकार सम्मान आदि हैं।

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