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नैतिक हिन्दी वर्ण माला…

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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अ से अनार,आ से आम,
पढ़-लिख कर करना है नाम।
इ से इमली,ई से ईख,
ले लो ज्ञान की पहली सीख।
उ से उल्लू,ऊ से ऊन,
हम सबको पढ़ने की धुन।
ऋ से ऋषि की आ गई बारी,
पढ़नी है किताबें सारी।

ए से एड़ी,ऐ से ऐनक,
पढ़ने से जीवन में रौनक।
ओ से ओखली,औ से औरत,
पढ़ने से मिलती है शोहरत।
अं से अंगूर,दो बिंदी का अः,
स्वर हो गए पूरे हः हः।

क से कबूतर,ख से खरगोश ,
पढ़-लिखकर जीवन में जोश।
ग से गमला,घ से घड़ी,
अभ्यास करें हम घड़ी-घड़ी।
ङ खाली आगे अब आए,
आगे की यह राह दिखाए।

च से चरखा,छ से छतरी,
देश के हैं हम सच्चे प्रहरी।
ज से जहाज,झ से झंडा,
ऊँचा रहे सदा तिरंगा।
ञ खाली आगे अब आता,
अभी न रुकना हमें सिखाता।

ट से टमाटर,ठ से ठठेरा,
देखो समय कभी न ठहरा।
ड से डमरू,ढ से ढक्कन,
समय के साथ हम बढ़ाएं कदम।
ण खाली अब हमें सिखाए,
जीवन खाली नहीं है भाई।

त से तख्ती,थ से थन,
शिक्षा ही है सच्चा धन।
द से दवात,ध से धनुष,
शिक्षा से हम बनें मनुष।
न से नल,प से पतंग,
भारत-जन सब रहें संग-संग।
फ से फल,ब से बतख,
ज्ञान-मान से जग को परख।
भ से भालू,म से मछली,
शिक्षा है जीवन में भली।

य से यज्ञ,र से रथ,
पढ़-लिखकर सब बनो समर्थ।
ल से लट्टू,व से वकील,
ज्ञान से सबका जीतो दिल।

श से शलजम,ष से षट्कोण,
खुलकर बोलो तोड़ो मौन।
स से सपेरा,ह से हल,
श्रम से ही मिलता मीठा फल।

क्ष से क्षत्रिय हमें यही सिखाए,
दुःख में कभी नहीँ घबराएँ।
त्र से त्रिशूल,ज्ञ से ज्ञानी,
बच्चों अब हुई खत्म कहानीll

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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