प्रवीण कुमार जैन
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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जनभाषा में न्याय….
डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ जी,
सादर नमस्कार।
आपने जनभाषा में न्याय के अधिकार को लेकर जो अत्यंत विचारोत्तेजक, तथ्याधारित और संवेदनशील स्वर उठाया है, वह आज के समय की आवश्यकता भी है और भारत की आत्मा की पुकार भी। अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद जैसे व्यक्तित्व, जो संविधान सम्मत, राज्य की राजभाषा में न्याय माँगने का साहस करते हैं, और इसके बदले सत्ता-तंत्र द्वारा दंडित किए जाते हैं, वह दृश्य किसी एक व्यक्ति का नहीं, पूरे राष्ट्र की भाषिक गरिमा और जनतांत्रिक चेतना की परीक्षा है।
मैं इस पूरे घटनाक्रम से अत्यंत व्यथित और क्षुब्ध हूँ। यह केवल भाषिक अन्याय नहीं, यह न्याय-तंत्र में वर्चस्ववादी मानसिकता के विरुद्ध सत्य का संघर्ष है। यह संघर्ष एक व्यक्ति का नहीं, पूरे भारतवर्ष की बहुभाषिक आत्मा का है।
मैं स्पष्ट रूप से कहता हूँ-
अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद जी को न्याय मिलना चाहिए। यह केवल एक व्यक्ति नहीं, जनभाषा में न्याय के अधिकार की बहाली की लड़ाई है।
जो मौन हैं, वे भी दोषी हैं। अब मौन रहना अन्याय को प्रश्रय देना है। मैं इस मुद्दे को लेकर एक सामाजिक याचिका प्रेषित कर रहा हूँ, जिसे सभी जनभाषा प्रेमियों से समर्थन प्राप्त होगा।
मैं संबंधित संवैधानिक पदों पर बैठे उच्चाधिकारियों को पत्र का प्रारूप भेज रहा हूँ, जिसमें इंद्रदेव प्रसाद के साथ हुई कार्यवाही की न्यायिक जाँच की माँग है।
यदि उचित मंच उपलब्ध हो, तो मैं जनहित याचिका हेतु भी तैयारी कर सकता हूँ, जिससे कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भी हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में न्यायिक प्रक्रिया को वैधानिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया जा सके।
मैं आपकी निर्भीक अभिव्यक्ति के लिए आपको सच्चे मन से धन्यवाद देता हूँ। आज हिन्दी का संघर्ष फिर से १९०० के दशक की स्वराज्य-भावना से जुड़ता प्रतीत हो रहा है। यह लिपिकीय नहीं, सांस्कृतिक और नैतिक स्वतंत्रता का प्रश्न है।
यदि हमने आज यह संघर्ष नहीं किया, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें एक मौन अपराधी मानेंगी।
जय जनभाषा, जय भारत
(सौजन्य:वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुम्बई)