डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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यह कैसा अत्याचार है,
क्यों चारों तरफ हाहाकार है
क्यों गरमी से हम झुलस रहे,
बाढ़ उपजाऊ जमीन निगल रहे।
किसने किया यह काम,
क्यों नहीं दे रहे उनका नाम
इस त्रासदी से कैसे निपटें ?
अपने स्वार्थ से जब है लिपटें।
सूरज की गर्मी तब भी थी,
धरती धूप से तपती थी
फिर भी हम ठंडक पाते थे,
जब पेड़ की छाँव के नीचे आते थे।
ना जाने क्यों पेड़ काट दिए,
इमारतों के जंगल बना दिए
शपथ ली थी एक के बदले दस पेड़ लगाएंगे,
पर्यावरण को हम बचाएंगे।
हरिभूमि का अंश कहीं नहीं,
नए वृक्ष के लिए जगह नहीं
भूमि का दोहन हम करते हैं,
बड़ी इमारत खड़ी करते हैं।
इससे पैसा तो मिल जाएगा_
पर साँस लेने के लिए ऑक्सीजन कहां से आएगी
न भूलो कि पेड़ ही जीवन का आधार है,
न हो पेड़ तो सब सुख निराधार है
प्राणवायु दान वृक्षों का कर्म है,
वृक्ष बचाना और लगाना ही मनुष्य का धर्म है॥