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पहचान

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’ 
छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
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‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष…………………

आज-कल मैं कुछ
मुस्कुरा के चलती हूँ।
झुका के नहीं,
सिर उठा के चलती हूँ।
अहं से नहीं…,
अहम से।

मैं मुस्कुरा के
चलती हूँ,
क्योंकि
अब मेरी अपनी,
अहम पहचान है…।

अब भी मैं,
अपने पिता
की बेटी तो हूँ,
पर मुस्कुराती हूँ
क्योंकि,
अब वो भी
मेरे पिता हैं,
जाने जाते हैं
मेरे नाम से…।

मैं आज भी,
अपने प्यारे भाई की
बहन तो हूँ,
पर अब मैंने
अपनी पहचान
कुछ ऊँची कर ली है,
एक उड़ान भर ली है
और अब,
मेरे अपने नाम से,
आते हैं पत्र,घर में
विवाह पत्रिकाएं
गृह प्रवेश के
आमंत्रण भी,
अब प्यारा भैया
मेरा भाई भी है…।

मैं मुस्कुरा के चलती हूँ,
क्योंकि
अब ‘वो’ मेरे पति हैं…
कामकाजी होने की थकान
मिल के बांटते हैं,
बिना हीन भावना के
सब्जियां भी काटते हैं,
माना कि
सुखद एहसास है
उनकी पत्नी कहाना,
पर ये भी तो
है कितना सुहाना,
कि अब वो
मेरे पति हैं…,
मेरी पहचान
की गति हैं…।

मैं मुस्कुरा के चलती हूँ
हालाँकि,
मेरी अवस्था
चढ़ रही है
प्रौढ़ता के सोपान।
वृद्ध हो रही हूँ मैं,
पर मेरी पहचान
तरुण होती जा रही है,
मेरे युवा बेटे को
भा रही है,
और वो आज भी
मेरा ही बेटा है…।

आजकल मैं,
मुस्कुरा के चलती हूँ
झुका के नहीं,
सिर उठा के चलती हूँ
क्योंकि,
कुछ कम हुई
इस दुनिया की
बीमारी है,
आज सबने
मेरी ये पहचान
स्वीकारी है,
किसी की बेटी
बहन,पत्नी या माँ
होने के साथ ही…
मेरा अस्तित्व नारी है।
मेरी पहचान नारी है…
मेरा अस्तित्व नारी है,
मेरी पहचान नारी है॥
(इक दृष्टि यहां भी:अहं-अहंकार,अहम-अहमियत,महत्ता)

परिचय-सुश्री अंजुमन मंसूरी लेखन क्षेत्र में साहित्यिक उपनाम ‘आरज़ू’ से ख्यात हैं। जन्म ३० दिसम्बर १९८० को छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) में हुआ है। वर्तमान में सुश्री मंसूरी जिला छिंदवाड़ा में ही स्थाई रुप से बसी हुई हैं। संस्कृत,हिंदी एवं उर्दू भाषा को जानने वाली आरज़ू ने स्नातक (संस्कृत साहित्य),परास्नातक(हिंदी साहित्य,उर्दू साहित्य),डी.एड.और बी.एड. की शिक्षा ली है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक(शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय)का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप दिव्यांगों के कल्याण हेतु मंच से संबद्ध होकर सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,हाइकु,लघुकथा आदि है। सांझा संकलन-माँ माँ माँ मेरी माँ में आपकी रचनाएं हैं तो देश के सभी हिंदी भाषी राज्यों से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं तथा पत्रों में कई रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। बात सम्मान की करें तो सुश्री मंसूरी को-‘पाथेय सृजनश्री अलंकरण’ सम्मान(म.प्र.), ‘अनमोल सृजन अलंकरण'(दिल्ली), गौरवांजली अलंकरण-२०१७(म.प्र.) और साहित्य अभिविन्यास सम्मान सहित सर्वश्रेष्ठ कवियित्री सम्मान आदि भी मिले हैं। विशेष उपलब्धि-प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के शिष्य पंडित श्याम मोहन दुबे की शिष्या होना एवं आकाशवाणी(छिंदवाड़ा) से कविताओं का प्रसारण सहित कुछ कविताओं का विश्व की १२ भाषाओं में अनुवाद होना है। बड़ी बात यह है कि आरज़ू ७५ फीसदी दृष्टिबाधित होते हुए भी सक्रियता से सामान्य जीवन जी रही हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावपूर्ण शब्दों से पाठकों में प्रेरणा का संचार करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-माता-पिता हैं। सुख और दु:ख की मिश्रित अभिव्यक्ति इनके साहित्य सृजन की प्रेरणा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
हिंदी बिछा के सोऊँ,हिंदी ही ओढ़ती हूँ।
इस हिंदी के सहारे,मैं हिंद जोड़ती हूँ॥ 
आपकी दृष्टि में ‘मातृभाषा’ को ‘भाषा मात्र’ होने से बचाना है।

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