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पिता का प्रेम जैसा हमने पाया

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष…..

नमन करूँ हे पिता तुम्हें,
मुझसे मुँह कैसे मोड़ लिया
स्वार्थ भरी इस दुनिया में,
क्यों मुझे अकेला छोड़ दिया।

कैसे जाऊँगा तुम बिन मैं,
बस इतना तो सोचा होता
हो गया अकेला दुनिया में,
तुम छोड़ गऐ मुझको रोता।

लाड़प्यार से बेटे को जब,
तुमने गोद खिलाया था
घुटनों पर चलने वाले को,
तब उँगली पकड़ चलाया था।

अहसास मुझे अब होता है,
कितना करते थे प्यार मुझे
तब मन मेरा भर आता है,
नयना रहते हैं बुझे-बुझे।

कंधों पर लिए घूमते थे,
औ मैं किलकारी भरता था
तुम मुझको लिए दौड़ते थे,
मैं गिर जाने से डरता था।

वो समय याद कर करके ही,
पल भर को मैं रो लेता हूँ
यादों में तुम आ जाते हो,
मैं आँखों को भर लेता हूँ।

बाहर से बहुत कठोर हृदय,
भीतर थे श्रीफल के जैसे
जब मीठी डाँट झिड़कते थे,
लगते थे रसगुल्ले जैसे।

चौबीस बरस से सपनों में,
गुमसुम-सा सोया रहता हूँ
इक पल भी भूल नहीं पाता,
अपनें में खोया रहता हूँ।

तुम चले गए माँ चली गई,
छोटों ने भी ठुकराया है
रह गया अकेला दुनिया में,
मैं हूँ और मेरा साया है।

तकदीर मेरी कुछ अच्छी थी,
पत्नी ने साथ निभाया है,
पुत्रवधू बेटा-बेटी,
किस्मत से अच्छा पाया है।

अब उम्र हो चली है बापू,
मन ऊब गया है दुनिया से,
अब रहना रास नहीं आता,
ले जाओ मुझे इस दुनिया से।

या तुम ही चले आओ फिर से,
मुझ पर वो प्यार लुटाने को।
जी बहुत चाहता है मेरा,
उस गोदी में सो जाने को॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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