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आप पत्थर नहीं,हरी दूब हो

अनूप कुमार श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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आप पत्थर नहीं
हरी दूब हो,
आपको इतना
तो महसूस हो।

मन सजाओ जरा
हरे दरख्त-सा,
नयन से नयन में
न‌ई धूम हो।

आप नश्तर नहीं
ओंस की बूंद हो,
आपको भी ये सावन
महसूस हो।

आप पत्थर नहीं
हरी दूब हो,
आपको इतना
तो महसूस हो॥

इक कैलेण्डर टंगा है
मेरे सामने,
रोज़ कटती हैं
तारीख इस उम्र की।

हर तरफ़ बिखरे
बिखरे किस दर्द में,
आप खुद ही दवा हो
इतना महसूस हो।

रोती-हँसती यहां
जो शिकायतें मिलीं,
अपने जैसे लावारिस
किसी मोड़ पर।

किस भरोसे पर ही
सुबह बन ग‌ए,
आप सबके लिए ही
कोई धूप हो।

लिख दो फिर से न‌ई
इक जिंदगी,
लोग कहने लगे आप
बाखूब हो।

आप पत्थर नहीं
हरी दूब हो,
आपको इतना
तो महसूस हो॥

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