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पिता हैं तो हम हैं

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष…..

परम पूज्य पिता की महानता जितनी बताऊँगी है कम,
याद आती है बचपन से ले के सभी बातें,आँखें होती हैं नम।

पिता,मेरी माँ की लाल-लाल चूड़ी सिन्दूर बिंदी सुहाग है,
माता-पिता के प्रेमभरे जीवन से,धरा पर हम आज हैं।

पिता हैं मित्र,जो हमें दुनिया में सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं,
मुझे बड़ा करने के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करते हैं।

जब छोटा था तो अंगुली पकड़कर पिता चलना सिखाए हैं,
कंधे पर बिठाकर के घर-बाजार में पिताजी सैर कराए हैं।

सभी भाई-बहनों के प्रति,पिताजी ने प्रेम प्यार खूब लुटाया है,
अन्तिम क्षण तक पिता हमारे,मुझे अपना स्नेह दर्शाया है।

पिता,मजदूरी करके पसीना बहा कर मुझे बड़ा किए हैं,
पढ़ा-लिखा कर,बुद्धिमान मुझको पिताजी बना दिए हैं।

सच कहती हूँ मित्रों,कभी भूलना नहीं,पिता हैं तो हम हैं,
बचपन से ले के युवा अवस्था तक पिता है,नहीं तो गम है।

पिता ही घर-परिवार की छत्रछाया है,घर के राजा हैं पिता,
जब से बोलना सीखा,गुरु समान पहली शिक्षा दिए पिता।

कोटि-कोटि नमन तुझे करती हूँ,हे हमारे परम पूज्य पिता,
पिता सदा ही महान हैं,पढ़ कर के देखी है भागवत गीता।

पिता आज्ञा पालन करना,श्रीराम से मनुष्य ने सीखा है,
पुत्र राम जैसा हो,श्रीवाल्मीकि ने ‘रामायण’ में लिखा है।

हे पिता मैं आपकी सन्तान हूँ,आपने फर्ज अपना निभा लिया,
सुखमय जीवन देकर मुझको,धर्म की राह को दिखा दिया।

श्रीपिता आपको कभी कष्ट ना हो,अब मैं फर्ज निभाऊँगा,
वृद्धावस्था आपकी आने पर,मैं खुद छड़ी बन जाऊँगा।

‘पिता का प्यार’ बहुत निराला है,जो उन्होंने मुझे प्यार किया
और हम अब आपकी सेवा करेंगे,जो आपने सिखा दिया॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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