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पितृपक्ष में देवता आते

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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पितृ पक्ष विशेष…..

पितृपक्ष में वो देवता आते,जिन्दगी ये हमें जो दे जाते।
मान उनका करे सदा जीवन,जिन्दगी में न दु:ख कभी आते।

भाद्रपक्ष पूर्णिमा के दिन से ही,कृष्णपक्ष की अमावस्या के दिन तक,
दिन ये सोलह कहाते पितरों के,सुख बनें जिन्दगी में सब आते।
जिन्दगी जल-हवा-सी हो निर्मल,स्वर्ग सुख सब जमीं पे बन आते,
पितृपक्ष…॥

बूंद जल से करें सभी तर्पण,अन्न और घी का भी करें अर्पण,
काँव पक्षी उन्हें वो दे आते,माँग सारे सुखों को ले आते।
तीन पीढ़ी का मिलता तब आशीष,पिंड दाता के भाग खुल जाते,
पितृपक्ष…॥

रूप ले कर वो जीव का कोई,द्वार पर इन दिनों में आ जाते,
मान-सम्मान हर किसी का हो,द्वार पे जो भी जीव आ जाते।
शास्त्र कहते सभी पुरातन ये,तिल,चना,खीरा,सब उन्हें भाते,
पितृपक्ष में वो देवता आते,जिन्दगी ये हमें जो दे जाते…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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