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पुरुष होने की पीड़ा

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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कुछ पीड़ा कुछ अनुभूतियाँ,
ठोस चट्टानों तल दबे लावे जैसी
हृदय पर विप्लव मचाती रहती है,
किंतु उसे बलात दबा कर
सागर गम्भीर, पर्वत-सा ऊँचा,
पीड़ा की वह अवहेलना उपेक्षा करता है…।

नारी की कोमलता, सुंदरता, सहृदयता, त्याग, सेवा, समर्पण, ममता पर केंद्रित लेखनी
आज पुरुष की कठोरता, निष्ठुरता, चंचलता, चपलता को देखते
एक अनदेखी पीर से टकरा गई,
और पीड़ा-सपाट भावहीन मुखड़ा
आँसू बिन आँखों लिए कौतूहल से लेखनी को देखने लगा
लेखनी पढ़ती गई…।

हमेशा पंक्तियों में लगे पाँव की पीड़ा,
खड़े-खड़े अड़ चुके पैरों की अकड़
धूप, बरसात, ठंड, गर्मी अपनी जेब रख-
भोर से रात तक आश्रितों के लिए जिजीविषा जुगाड़ता तन्मय कठोर तन,
ममता का मोल पिता का कर्ज उतारने पर आत्मा-
बेटी की जिंदगीभर ससुराल में खुशी के लिए, प्रबंध करता अवचेतन मन
बहन की विदाई पर दीवारों से लग कर रोती आँखें,
भाई के लिए हुलसती बाँहें।

पत्नी प्रेयसी के नखरे उठाता,
नादानियों को छुपाता हृदय…
बेटी-बहन की अस्मिता सुचिता का बोझ उठाता मस्तिष्क…
कदाचित इन्हीं कारणों से,
वह कठोर है।
भाव छिपाता,
अंदर से तरल और कमजोर है।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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