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गोष्ठी में हुआ सिद्धेश्वर जी का एकल लघुकथा पाठ

भोपाल (मप्र)।

लघुकथा शोध केंद्र के तत्वावधान में लघुकथा पर आभासी संगोष्ठी बेहद शानदार और ज्ञानवर्धक रही। देश के प्रसिध्द कवि, कहानीकार, ग़ज़लकार, , चित्रकार, कार्यक्रम संयोजक एवं संगोष्ठी में आमंत्रित लघुकथाकार सिद्धेश्वर जी की लघुकथाएं एक से बढ़कर एक रहीं। लघुकथाओं की बेहतरीन समीक्षा साहित्यकार गोकुल सोनी द्वारा की गई, जिससे कई बातें सीखने को मिली।
साहित्यकार कांता राय द्वारा निर्देशित केंद्र से आयोजित यह संगोष्ठी बहुत सटीक और सारगर्भित रही। इसमें अपनी ५ लघुकथाओं के पाठ के पश्चात सिद्धेश्वर जी ने कहा कि, ऐसी समीक्षा से किसी को भी कुछ सीखने का अवसर प्राप्त होता है। मैंने भी एक बार समीक्षा की थी तो कई लोग नाराज हो गए थे, और फिर उन्होंने मुझे अपने मंच पर एक समीक्षक के रूप में कभी जोड़ा ही नहीं। संगोष्ठी से मुझे पता चला कि, लघुकथाओं को पाठक भी बेहतर समझते हैं। समीक्षा करते हुए अध्यक्षीय भूमिका में अजय शुक्ला ने कहा कि, एक सशक्त कथाकार सिद्धेश्वर की पांचों लघुकथाएं इस संगोष्ठी की उपलब्धि रही। हालांकि, समीक्षक गोकुल सोनी का यह कहना उचित है कि, कुछ लघुकथाओं में यदि भाषागत कसाव लाया जाए, तो वह पाठकों को और अधिक प्रभावित कर सकती है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद (पटना) की उपाध्यक्ष
राज प्रिया रानी ने बताया कि, समीक्षक श्री सोनी ने सिद्धेश्वर की लघुकथाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि, सकारात्मक दिशा में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते हुए सिद्धेश्वर ने कई सशक्त लघुकथाओं को प्रस्तुत किया है। खासकर ‘जंगल’ और ‘बेटा-बेटी एक समान’ हमारे हृदय को झकझोर देती है। ‘रिश्तों का वायरस’ की प्रस्तुति सर्वाधिक प्रशंसनीय है, किंतु यह लघुकथा कुछ अधिक लंबी बन गई है।

पूरी संगोष्ठी का सशक्त संचालन करते हुए कर्नल (डॉ.) गिरिजेश सक्सेना ने कहा कि, आज की यह लघुकथा संगोष्ठी कई मायने से समृद्ध है। प्रतिक्रियाओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि, पाठकों ने भी सिद्धेश्वर की लघुकथाओं को काफी पसंद किया है। गोष्ठी के अंत में पाठकीय चर्चा भी चली।