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पैबंद कहाँ नहीं हैं! जिन्दगी…

राधा गोयल
नई दिल्ली
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क्या कहते हो
थेगले लगे हुए कपड़े क्यों पहने हैं ?
शायद तुम आजकल का फैशन नहीं जानते,
नामचीन शो-रूम से ये कपड़े खरीदे हैं।

तुम कहते हो पैबन्द लगे कपड़े हैं,
आजकल पैबंद कहाँ नहीं हैं!
सभी की जिंदगी में पैबंद ही पैबंद लगे हैं।

कतरा-कतरा जिन्दगी,
टुकड़ा-टुकड़ा जिन्दगी
जोड़-तोड़ कर जिन्दगी,
इसकी, उसकी बन्दगी
करके जीते जिन्दगी।

बोटी-बोटी करके कोई,
छील गया है जिन्दगी
कहने को जीवित हैं,
लेकिन छीज गई है जिन्दगी।

केवल एक कमाने वाला,
खाने वाले चार हैं
एक कमाने वाले की,
जब जिबह करा दी जिन्दगी
उसके सारे ही परिवार की,
खुशियाँ खा गई जिन्दगी
जीने को अब भी जीते हैं,
कतरा-कतरा जिन्दगी।

नजर दूर से आती खुशियाँ,
मगर निकल जातीं कतरा कर
जिसने कतरा इन्सानों को,
हँसते हैं वो ठठा-ठठा कर
देख-देख खुश होते वहशी,
चीथड़ा करके जिंदगी।
फिर से प्रस्तर युग आया है,
नरभक्षी है जिन्दगी॥