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जयंती पर स्मृति-पुस्तकालय लोकार्पित

पटना (बिहार)।

संस्कृत, हिंदी, बँग्ला और अंग्रेज़ी समेत अनेक भाषाओं के उद्भट विद्वान तथा शिक्षाविद डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर’ की जयंती पर रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में उनकी स्मृति को समर्पित नए पुस्तकालय का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण-उद्गार में बिहार विधान सभा के अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने कहा कि, शेखर जी एक चिंतक साहित्यकार थे। जो पूर्वजों की थाती है, उसे समाज तक, अगली पीढ़ियों तक फैलाना हमारा कर्तव्य है।
इस समारोह के मुख्य अतिथि पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि, पुस्तकालय ज्ञान के मंदिर होते हैं। शेखर जी के नाम से स्थापित हुआ पुस्तकालय उनकी स्मृति को सदा जीवित बनाए रखेगा। पटना विवि के कुलपति डॉ. के.सी. सिन्हा ने कहा कि, किसी भी समाज का मूल्यांकन उसके साहित्यकारों को देखकर किया जाता है, क्योंकि साहित्य ही समाज का निर्माण करता है। अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा कि, शेखर जी एक वरेण्य कवि ही नहीं, महान भाषा-वैज्ञानिक थे। ‘हिन्दी धातु कोश’ का सृजन कर भाषा-परिष्कार के लिए उन्होंने जो कार्य किया, वह दुर्लभ है। सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष प्रो. केसरी कुमार को भी उनकी जयंती पर स्मरण किया गया।
शेखर जी की छोटी पुत्रवधु डॉ. मधु वर्मा ने कहा कि, हिन्दी साहित्य की गरिमा वृद्धि में पिताजी का बहुत बड़ा योगदान था। पहली बार दिनकर जी पर उन्होंने ही लिखा था।
दूरदर्शन बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डॉ. राज कुमार नाहर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद, शेखर जी के सिद्धेश्वर जी और डॉ. मनोज गोवर्द्धनपुरी आदि ने भी विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। कवयित्री विभारानी श्रीवास्तव, डॉ. पंकज वासिनी, मधु रानी लाल, डॉ. रेणु मिश्र, ऋचा वर्मा, डॉ. प्रतिभा रानी, सिद्धेश्वर जी और भास्कर त्रिपाठी आदि ने अपनी रचनाओं से काव्य-रसिकों का हृदय जीत लिया।
मंच का संचालन कुमार अनुपम ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।