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प्रकृति,पृथ्वी और प्रगति में संतुलन आवश्यक

सुश्री नमिता दुबे
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मनुष्य विकास के पथ पर बड़ी तेजी से अग्रसर है,उसने समय के साथ स्वयं के लिए सुख के सभी साधन एकत्र कर लिए हैं। बढ़ते विकास तथा समय के साथ आज हमारी असंतोष की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। प्रकृति में ऊर्जा संसाधन सीमित हैं, अतः यह आवश्यक हो गया है कि हम ऊर्जा संरक्षण की
ओर विशेष ध्यान दें,अथवा इसके प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करें।
पर्यावरण संकट की बढ़ती चिंता से प्रभावित होकर अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने सर्वप्रथम १९७० में पर्यावरण संरक्षण के समर्थन में २२ अप्रैल को पृथ्वी दिवस के वार्षिक आयोजन की शुरुआत की। आज लगभग १९२ से अधिक देशों में इसे इस दिन प्रतिवर्ष मनाया जाता है। दिवस मनाने का उद्देश्य उसकी अहमियत को जनसामान्य तक लाना होता है,फिर पृथ्वी तो हमारी माँ है,जो हमारी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करती है। किन्तु मानव बहुत स्वार्थी है,वह सिर्फ आज विकास के चरम पर
पहुंचना चाहता है। आज हम तेल रिसाव,प्रदूषण करने वाली फैक्ट्रियां और ऊर्जा संयंत्र,प्रदूषित जल-मल,विषैले कचरे, कीटनाशक,जंगलों की क्षति,वन्य जीवों के विलोपन,मिसाइल परीक्षण और रासायनिक हथियारों के उपयोग से विभिन्न प्राकृतिक आपदा से गुजर रहे हैं। प्राकृतिक संतुलन बिगड़
रहा है।
श्रीमद भागवत में कहा गया है कि,वास्तव में कुछ भी शेष नहीं रह जाएगा। हमें यह याद रखना होगा कि,हम प्रकृति के अनुपम उपहारों से लबरेज है। हमें चन्द्रमा को धन्यवाद देना चाहिए,जो अँधेरी रात को सुन्दर चाँदनी रात में बदल देता है,हर उस पेड़-पौधे के प्रति आभार व्यक्त करना होगा,जो हमारे लिए अपने जीवन से समझौता करते हैं। पेड़ इंसान को सहायता देने के लिए और जानवर प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए, इसलिए हमें सभी सजीवों के बारे में सोचना चाहिए,जो किसी न किसी रूप में हमारे सहायक है।
क्या हम प्रकृति के बगैर जीवन की कल्पना कर सकते हैं ?दुनिया की रचना करने वाले ने सभी चीजों का क्रमिक व्यवस्थापन कर रखा है। अतः,यह आवश्यक है कि हम आज पृथ्वी दिवस पर ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दें,अथवा प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करें,क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयासों में सफल नहीं होते तो सम्पूर्ण मानव सभ्यता ही खतरे में पड़ सकती है। पृथ्वी पर ऐसे ऊर्जा संसाधनों की कमी नहीं,जो प्रदूषण रहित है। सभी नागरिकों को ऊर्जा के महत्व को समझना होगा तथा ऊर्जा संरक्षण के प्रति जागरूक बनना होगा,तभी हम हमारी धरती माँ को सुरक्षित
कर सकते हैं। अगर हमें पृथ्वी को बचाना है,तो हमें कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। औद्योगिक रूप से विकसित देशों को व्यापक कार्बन कटौती के लिए राज़ी नहीं किया गया तो पृथ्वी का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

परिचय : सुश्री नमिता दुबे का जन्म ग्वालियर में ९ जून १९६६ को हुआ। आप एम.फिल.(भूगोल) तथा बी.एड. करने के बाद १९९० से वर्तमान तक शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। आपका सपना सिविल सेवा में जाना था,इसलिए बेमन से शिक्षक पद ग्रहण किया,किन्तु इस क्षेत्र में आने पर साधनहीन विद्यार्थियों को सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन देकर जो ख़ुशी तथा मानसिक संतुष्टि मिली,उसने जीवन के मायने ही बदल दिए। सुश्री दुबे का निवास इंदौर में केसरबाग मार्ग पर है। आप कई वर्ष से निशक्त और बालिका शिक्षा पर कार्य कर रही हैं। वर्तमान में भी आप बस्ती की गरीब महिलाओं को शिक्षित करने एवं स्वच्छ और ससम्मान जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। २०१६ में आपको ज्ञान प्रेम एजुकेशन एन्ड सोशल डेवलपमेंट सोसायटी द्वारा `नई शिक्षा नीति-एक पहल-कुशल एवं कौशल भारत की ओर` विषय पर दिए गए श्रेष्ठ सुझावों हेतु मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा और कौशल मंत्री दीपक जोशी द्वारा सम्मानित किया गया है। इसके अलावा श्रेष्ठ शिक्षण हेतु रोटरी क्लब,नगर निगम एवं शासकीय अधिकारी-कर्मचारी संगठन द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है।  लेखन की बात की जाए तो शौकिया लेखन तो काफी समय से कर रही थीं,पर कुछ समय से अखबारों-पत्रिकाओं में भी लेख-कविताएं निरंतर प्रकाशित हो रही है। आपको सितम्बर २०१७ में श्रेष्ठ लेखन हेतु दैनिक अखबार द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा गया है। आपकी नजर में लेखन का उदेश्य मन के भावों को सब तक पहुंचाकर सामाजिक चेतना लाना और हिंदी भाषा को फैलाना है।

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