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प्रतिस्पर्धा,प्रतिष्ठा और प्रदर्शन के लिए कितनी अमानवीय हिंसा…

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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शुरू से ही मानव ने विकास किया और उसके पास मति-बुद्धि-विवेचना-ज्ञान का होने से अजीर्ण होना शुरू हुआ और वह विवेक हीन होना शुरू हुआ। मानव का विकास में मानवीय गुणों का होना अनिवार्य है,अन्यथा वह जानवर से भी बुरा है। साक्षर जब बिगड़ता है,तब वह राक्षस बन जाता है।
मानव में पाप और कषाय यानी हिंसा,झूठ, चोरी कुशील परिग्रह (पंच पाप ) क्रोध मान माया लोभ (चार कषाय ) इनके ऊपर पूरा व्यापार या जीवन चल रहा है,जबकि जिसने जन्म लिया है उसे निश्चित ही मरना है। कोई भी अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता,न गया और न ले जाएगा। संसार में सब वस्तुएं अनित्य हैं,सुखाभास होता है पर वास्तविक सुख है ही नहीं या बहुत क्षणिक होता है।
इस काल में कई लोगों के पुण्य या पाप के उदय से बहुत लाभ हुआ और बहुत अधिक धन कमाया। यह पुण्य पर्व था और आगे भी आएगा,पर अनैतिक धन कमाने वालों का इस पर ध्यान नहीं गया कि,इस क्षण जहाँ जनमानस को सहयोग की अपेक्षा थी,उसी दौर में शोषण कर अंतहीन धन सामग्री कमाई,और इसका प्रतिफल क्या होगा!
इस समय एक देश में सत्ता हथियाने के लिए कितना घिनौना खेल खेला जा रहा है। लगभग २० वर्ष में २ लाख चालीस हजार जान गई और विगत १० वर्ष में ११ हज़ार महिलाएं और बच्चे मारे गए। यह कल्पना से परे की बात है। सरकार मात्र आँकड़े बताती है,पर जिस घर का सदस्य मरता है,उसका खालीपन कौन भर सकता है-मात्र एक बासी कुर्सी के लिए। अभी भी कत्लेआम -बलात्कार,लूट-खसोट की जा रही है। हिंसा के तांडव से सब भयभीत हैं और आशंका में डूबे हैं। अपना घर वतन छोड़कर भाग रहे हैं।
जिनको सत्ता की भूख है,वे प्रतिष्ठा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।प्रदर्शन यानी उनके पास कितनी शक्ति है, जिसके बल पर सत्ता पर काबिज़ होने और प्रतिस्पर्धा अपने निजियों से ही है। सत्ता का इतना घिनौना हस्तांतरण अमान्य है। हम कैसे अपने-आपको सभ्य या विकसित मानें! यह समझना जरुरी है कि इतना सब-कुछ करने के बाद में स्थाई रूप से क्या हासिल होगा।
वर्तमान में विश्व तीन गुट पर चल रहा है-पेट्रोल (तेल),दवा और हथियार)ये सब युद्ध के मुख्य कारक बने हैं और हर कोई अवसर की तलाश में है,और कोई सुरक्षित नहीं है। आज भी इतनी विभीषिका के बाद यदि धरम यानी अहिंसा,सत्य,अचौर्य,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे व्रतों का पालन नहीं किया तो इसका ग्रास सबको बनना होगा। जब तक एक-दूसरे के भावों या विचारों का आदर करना नहीं सीखेंगे,तब तक सु-शांति मिलना असंभव ही होगा। युद्ध का युद्ध से निर्णय करना मूर्खता है,युद्ध का मार्ग वार्ता से निकलता है।
कौन कितने वर्ष तक जियेगा,अधिकतम १०० वर्ष-वह भी नियति द्वारा निर्धारित है।कोई भी स्वतंत्र नहीं है,और सभी एक-दूसरे के पूरक और उपकारी हैं। कोरी प्रतिस्पर्धा, प्रतिष्ठा और प्रदर्शन से कोई लाभ नहीं है-शांति से जियो और जीने दो। मानवता घटने से अमानवीयता आएगी।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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